पता-यह रायपुर से लगभग 47 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। राजीव लोचन का भव्य मंदिर।
त्रिवेणी संगम-राजिम में तीन नदियों का त्रिवेणी संगम है, महानदी, पैरी, सोढुर है।
गर्भ गृह में स्थित-राजिम मंदिर के गर्भ गृह में स्थित है भगवान राजिम लोचन (विष्णु) चतुर्भुजी मूर्ति काले रंग की पत्थर से बनी हुई है।
कुलेश्वर महादेव का मंदिर-त्रिवेणी संगम के बीच में स्थित है कुलेश्वर महादेव का मंदिर है। कहा जाता है की इस मंदिर की स्थापना श्री जानकी के द्वारा किया गया था। नदी के किनारे भूतेश्वर व पंचेश्वर महादेव के
राजिम का प्राचीन नाम – कमलक्षेत्र पदमापुरी राजिम का प्राचीन नाम है।
संगम स्थल- राजिम को इलाहाबाद जैसा एक संगम स्थल माना जाता है।
प्राचीन मंदिर- राजिम लोचन मंदिर यहाँ सभी मंदिरो से प्राचीन है।माना जाता हैं की यह मंदिर 8 वी सताब्दी का है ।
लोमश ऋषि का आश्रम – राजिम में कुलेश्वर महादेव से कुछ दूर पर है लोमश ऋषि का आश्रम।
छत्तीसगढ़ का प्रयाग-राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता हैं।
मेले का आयोजन-राजिम में प्रतिवर्ष माघ् पूर्णिमा को विशाल मेले का आयोजन होता है।इस मेले में सम्मिलित होने के लिए लाखो श्रद्धालु तथा साधू संत आते है।
मंदिर के चार अंग– राजिम मंदिर के चार अंग है महामण्डप, अन्तराल, गर्भगृह, प्रदक्षिणापद।
पिण्डदान- राजिम में भी पिण्डदान किया जाता है।
कमलक्षेत्र पदमापुरी राजिम की संरचना- जिस प्रकार समुद्र के भीतर त्रिशूल की नोक पर काशीपुर की रचना हुई एवं समुद्र के ऊपर शंख पर द्वारिकापुरी की रचना हुई उसी अनुरूप पाँच कोस का लम्बा चौडा वर्गाकार सरोवर है बीच में कमल का फूल है फूल के पाँच पंखुड़ी के ऊपर पांच स्वयंभू महादेव विराजमान है जिसे पाँच कोसी धाम के नाम से जाना जाता है।फूल के मध्य पोखर में कमलक्षेत्र पदमावतीपुरी राजिम नगरी निर्मित है। जहाँ अति प्राचीन देव शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा निर्मित मंदिर है जहाँ प्रभु श्री राजीव लोचन विराजमान है जो की त्रिलोकीनाथ तीर्थ राज के रूप में जाते है यहां सदृश्य त्रिवेणी संगम है जिसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग राज माना जाता है। यहाँ पूर्वजो का श्रा्द्ध कर मोक्ष प्राप्त किया जाता है।
नलवंशी नरेश विलासतुंगका राजीवलोचन मंदिर शिलालेख-यह अभिलेख राजीवलोचन मंदिर की भित्ति पर प्रदर्शित है।दक्षिण कोसल के परवर्ती नलवंश का यह एकमात्र ज्ञात अभिलेरव है।इसमे विलासतुंग द्वारा अपने स्वर्गवासी पुत्र की पुण्याभिवृध्दि तथा उनकी स्मृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए विष्णु के विशाल मंदिर के निर्माण का लालित्यपूर्ण वर्णन है। अभिलेख के प्रारंभ में भगवान विष्णु की सरस एवं भावमय स्तुति है।इसके पश्चात महाभारत मे वर्णित नैषध नरेशराजानल की कीर्ति का वर्णन करते हुये विलासतुंग के द्वारा स्वयं वंश का उससे सहसबंध निरूपित किया गया है।अभिलेख में इस वंश के पूर्व पुरूष पृथ्वीराज तथा विरुपराज काभी नामोल्लेख है।तिथि रहित इस अभिलेख की भाषा संस्कृत तथा लिपि कुटिलनागरी है। इसके रचयिता दुर्गगोल तथा उत्कीर्णक दुर्गहस्ति थे। लिपिके आधार पर इस अभिलेख की तिथि 7 वी सदी इसवी मानी जाती है।अभिलेख में वर्णित विष्णु मंदिर की समानता वर्तमान राजीवलोचन मंदिर से की जाती है।
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महादेव के देवदूत बाबा सत्यनारायण कोसमनारा, रायगढ़ पता –कोसमनारा से 19 किलोमीटर दूर देवरी, डूमरपाली में एक स्थान बैठ हुआ है सत्यनारायण बाबा। हठयोगी – बाबा जी भीषण गर्मी