छत्तीसगढ़ का खजुराहो भोरमदेव मंदिर, कवर्धा(छ. ग.)

                       भोरमदेव मंदिर, कवर्धा

         छत्तीसगढ़ का खजुराहो भोरमदेव मंदिर, कवर्धा(छ. ग.)

पता- राजधानी रायपुर से लगभग 125 किलोमीटर दूर चौरागांव में स्थित है। भोरमदेव का प्राचीन मंदिर।

गर्भगृह में विराजमान –  भोरमदेव मंदिर के गर्भगृह में विराजमान है।शिवलिंग । यह एक बहुत ही पुराना हिन्दू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है।
         
छत्तीसगढ़ का खजुराहो-  भोरमदेव मंदिर को छत्तीसगढ़ का  खजुराहो भी कहते है।

7वीं से 11वीं सदी का मंदिर –  भोरमदेव का मंदिर 7वीं सदी से 11 वीं सदी का मंदिर माना जाता है।
           छत्तीसगढ़ का खजुराहो भोरमदेव मंदिर, कवर्धा(छ. ग.)
मंदिर का निर्माण- 
भोरमदेव मंदिर का निर्माण  सन् 1039 ई. में फणिनागवंशी शासक गोपाल देव ने कराया था। यह मंदिर तल विन्यास में सप्तरथ चतुरंग एवं उर्ध्व विन्यास सप्तभूमि शैली का है। तल विन्यास में गर्भ गृह  अंतराल,अलंकृत स्तंभों से युक्त वर्गाकार मण्डप एवं तीन ओर प्रवेश के लिये अर्ध मण्डप निर्मित है। उध्व्र विन्यास में अधिष्ठान जंघा एवं शिखर मंदिर के प्रमुख अंग है। | इस मंदिर की कला में तांत्रिक प्रभाव परिलक्षित है। विभिन्न मैथुन दृश्यों के अंकन एवं कलात्मक -सौम्य के कारण इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ की संज्ञा दी जाती हैं।

मड़वा महल का निर्माण- भोरमदेव मंदिर से 1किलोमीटर कि दूरी पर हैं मड़वा महल इसे विवाह का प्रतीक तथा दूल्हादेव भी कहते है।मड़वा महल को नागवंशी राजा और हैंहवंशी रानी के विवाह के रूप में जाना जाता हैं। सन् 1349 में फणिनागवंशी राजा रामचंद्रदेव की पत्नी अम्बिकादेवी के द्वारा 5 वीं सताब्दी ईस्वी में मड़वा महल का निर्माण किया गया था। यह महल 16 स्तंभो पर टिकी हुई है।

छत्तीसगढ़ का खजुराहो भोरमदेव मंदिर, कवर्धा(छ. ग.)

भोरमदेव महोत्सव –  छत्तीसगढ़ शासन द्वारा हर साल मार्च के अंतिम सप्ताह तथा अप्रैल के पहले सप्ताह में भोरमदेव महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

कला शैली की झलक- 
भोरमदेव मंदिर के जंघा की तीन पंक्तियों में विभिन्न देवी देवताओं, कृष्णलीला नायक, नयिकाओं, युद्ध एवं मैथुन दृश्यों से अलंकरण किया गया है। मंदिर के भद्ररथ पर उकेरी प्रतिमा विशेष महत्व की है। जिसमें त्रिपुरान्तक वध चामुण्डा, महिषासुरमर्दिनी एवं नृत्य गणपति की प्रतिमाएँ विशेष कलात्मक और आकर्षक हैं एवं शिखर मंजरियों से अलंकृत है।

राधा कृष्ण मंदिर का रहस्य- 
नगर के मध्य में स्थित राधा कृष्ण मंदिर श्रद्धालु के लिए आस्था का केंद्र है।मंदिर के नीचे लगभग 12 से 14 किलोमीटर तक एक सुरंग भी बनाया गया जो सीधे भोरमदेव मंदिर में निकलता है।

उत्कृष्ट नक्काशि की मूर्तियों –
मंदिर के दीवारो पर आपको देवी देवताओं तथा मानव की अनेक प्रकार की मूर्ति दीवारों पर उकेरी गयी है। मंदिर के किनारे एक विशाल सरोवर है तथा उनके चारो तरफ फ़ैली मंदिर  कृतिमतापूर्वक पर्वत शृंखला के बीच हरी भरी घाटियों के कारण यहाँ आने वाले पर्यटको के मन को मोह लेती है।

छत्तीसगढ़ का खजुराहो भोरमदेव मंदिर, कवर्धा(छ. ग.)


कामोत्तेजक मुर्तियाँ- 
इस मंदिर के बाहय दीवारो पर बेहद सुंदर एवम्
कामोत्तेजक मुर्तियाँ बनायीं गयी है। इन दीवारों में पर चित्रित कामोक मुर्तियाँ विभिन्न 54 मुद्राओं में दर्शायी गयी है। वास्तव में यह मुर्तियां अनन्त प्रेम और सुंदरता का प्रतिक है।यह सारे चित्रण कलात्मक दृष्टी से भी महत्वपूर्ण है।

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