पता – छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की पुरानी बस्ती में स्थित हैं
कंकाली माता का भव्य मंदिर।
मंदिर का निर्माण – माना जाता है 400 साल पहले मां कंकाली माता मंदिर का निर्माण कराया गया था।
कंकाली तालाब – कहते हैं कि उस समय शमशान में दाह संस्कार के बाद हड्डियों को तालाब से डाल दिया जाता था तब से कंकाल से कंकाली तालाब का नामकरण हुआ है।
भव्य सरोवर – मंदिर के सामने में एक भव्य सरोवर है। इस सरोवर के बीच में एक मंदिर है इस मंदिर में शिवलिंग को स्थापित किया गया है।आज भी मां कंकाली के बाद होती है इस शिवलिंग की पूजा अर्चना।
चर्म रोग से मुक्ति – इस सरोवर की यह मान्यता है कि किसी भी व्यक्ति के शरीर में खुजली या चर्म रोग होता है तो कंकाली तालाब में डुबकी लगाने से वह इस रोग से मुक्त हो जाता है।
शमशान पर बना है यह मंदिर – माना जाता है कि मां कंकाली का जो मंदिर वह शमशान घाट में बना हुआ है।
कंकाली माता के उपासक – मां कंकाली मंदिर के महंत कृपाल गिरि जी महाराज मां कंकाली माता के उपासक थे।
साल में एक दिन ही खुलता है यह मंदिर – मां कंकाली माता का जो मंदिर है वह दशहरा के दिन ही खुलता है। मंदिर के अंदर में नागा साधुओं के अस्त्र शस्त्र हैं जैसे त्रिशूल, कुल्हाड़ी, ढाल, कमंडल, चिमटा, वस्त्र आदि रखे हुए हैं। शस्त्रों का पूजन भी इसी दिन होता है।इस दिन भक्तों की भारी भीड़ मां कंकाली के दर्शन के लिए उमड़ पड़ती है।
रामायण काल में – माना जाता है कि जब भगवान श्री राम और रावण का युद्ध हो रहा था उसी समय मां कंकाली युद्ध में प्रकट हुई थी और श्री राम को शस्त्रों से सुसज्जित किया था।
नवरात्रि पर्व पर जंवारा विसर्जन – नवरात्रि के पावन पर्व पर दशमी के दिन जवारा विसर्जन करने के लिए भक्तगण कंकाली तालाब पहुंचते हैं। मान्यता है कि जंवारा विसर्जन करने के कारण ही तालाब के पानी में औषधीय गुण है तभी से लोगो के चर्म रोग से राहत मिलती है।
मंदिर का इतिहास – बताते हैं कि किसी समय में इस स्थान पर शमशान और घना जंगल हुआ करता था।उस समय दाह संस्कार के बाद हड्डियों को तालाब से डाल दिया जाता था तब से कंकाल से कंकाली तालाब का नामकरण हुआ है।तब से इस मंदिर का नाम कंकाली मंदिर पड़ा। महंत कृपाल गिरी महाराज मां कंकाली के उपासक थे। मां कंकाली ने महंत कृपाल गिरी महाराज को स्वप्न दिया की मुझे कंकाली तालाब के पास स्थापित किया जाए।पर कृपाल गिरी महाराज माता की उपेक्षा कर बैठे। बाद में वह अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह मंदिर परिसर में ही जीवित समाधि ले ली। इस मंदिर के आस पास नागा साधुओ का मठ भी है। साल में एक दिन दशहरे के दिन पट के दरवाजे खोले जाते है। और शस्त्रों की पूजा भी इस दिन होती हैं जिनके दर्शन करने के लिए भक्तो की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है।
शास्त्रों के अनुसार माता की स्थापना मंदिर में कि गई बल्कि माता के शस्त्र कंकाली मठ पर रखे गए हैं।
मान्यता यह है कि दशहरा के दिन मां कंकाली अपने मूल स्थान से कंकाल मठ में आती है। दशहरे की दिन ही मंदिर के पट खोले
जाते हैं।
Youtube channel – hitesh kumar hk
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🙏 जय जोहार जय छत्तीसगढ़ 🙏