पता- यह रायपुर से 50 मील तथा सिरपुर से लगभग 15 मिल की दुरी पर स्थित हैं तुरतुरिया | इसकी गणना राज्य के प्रमुख तीर्थ स्थलो में की जाती हैं।
बौद्ध कालीन खंडहर हैं यहाँ – यहाँ अनेक बौद्ध कालीन खंडहर हैं, जिनका अनुसंधान अभी तक नहीं हुआ है। भगवान बुद्ध की एक प्राचीन भव्य मूर्ति, जो यहाँ स्थित है, जनसाधारण द्वारा वाल्मीकि ऋषि के रूप में पूजित है। पूर्व काल में यहाँ बौद्ध भिक्षुणियाँ का भी निवास स्थान था।
माता सीता का आश्रय स्थल- तुरतुरिया के विषय में कहा जाता है कि श्रीराम द्वारा त्याग दिये जाने पर माता सीता ने इसी स्थान पर वाल्मीकि आश्रम में आश्रय लिया था। उसके बाद लव-कुश का भी जन्म यहीं पर हुआ था।
महर्षि वाल्मीकि का आश्रम- रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम होने के कारण यह स्थान तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। धार्मिक दृष्टि से भी इस स्थान का बहुत महत्त्व है, और यह हिन्दुओं की अपार श्रृद्धा व भावनाओं का केन्द्र बिन्दु हैं।
पुरातात्विक इतिहास का परिचय – सन 1914 ई. में तत्कालीन अंग्रेज़ कमिश्नर एच.एम. लारी ने इस स्थल के महत्त्व को समझा और यहाँ खुदाई करवाई, जिसमें अनेक मंदिर और सदियों पुरानी मूर्तियाँ प्राप्त हुयी थीं।
मंदिर का विवरण – एक मंदिर है, जिसमें दो तल हैं। निचले तल में आद्यशक्ति काली माता का मंदिर है तथा दुसरे तल में राम-जानकी मंदिर है। इनके साथ में लव-कुश एवं वाल्मीकि की मूर्तियाँ भी विराजमान हैं।
इस जगह का नाम तुरतुरिया क्यों पड़ा – कहा जाता हैं की पर्वत की कुछ चटटानो की दरारों से पानी का झरना टूट-टूट कर बहने के कारण इसका नाम तुरतुरिया पड़ा हैं।
जानकी कुटिया- यह मान्यता है कि मातागढ़ में एक स्थान पर वाल्मीकि आश्रम तथा आश्रम जाने के मार्ग में जानकी कुटिया है।
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