वन की देवी माँ अंगार मोती angar moti dhamtari
स्थान – माँ अंगार मोती माता का मंदिर धमतरी से 12 कि.मी. की दूरी पर रविशंकर परियोजना के अंतर्गत गंगरेल बांध के तट पर स्थित है।
प्रवेश द्वार -माँ अंगार मोती के गेट के सामने आपको दो सिंह दिखाई देगा।
ऋषि अंगीरा कि पुत्री –माँ अंगार मोती परम तेजस्वी ऋषि अंगीरा कि पुत्री थी जिसका आश्रम सिहावा के पास घठुला में स्थित है|
आश्चर्यजनक –माँ अंगार मोती माता खुले आसमान के नीचे अपना आसन स्थापित किया है।
अधिष्ठात्री देवी – मां अंगार मोती माता कों 42 ग्रामों कि अधिष्ठात्री देवी का दर्जा प्राप्त है।
माता का मूल मंदिर –माँ अंगार मोती माता का मूल मंदिर है चंवर ,बटरेल ,कोरमा और कोकड़ी कि सीमा पर सुखा नदी के पवित् संगम पर स्थित है।
ज्योति कलश – मां अंगार मोती के दरबार में चैत्र व क्वार पक्ष में नवरात्री पर्व पर भक्तों के द्वारा मनोकामना ज्योति जलाई जाती है।
दीपावली पर्व पर- मां अंगार मोती के दरबार मे प्रतीवर्ष दीपावली के प्रथम शुक्रवार को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है|
ग्रामों की देवी –मेले में 42 ग्रामों के देवी देवता माता अंगार मोती को अपनी उपस्थति देती है ।
संतान सुख की प्राप्ति – मां अंगार मोती के दर्शन मात्र से ही निसंतान दम्पत्ति संतान सुख की प्राप्ति कर लेती हैं और माता सभी भक्तों के कष्ठ को हर लेती हैं।
अन्य मूर्ति – माता के दरबार में माता की मूर्ति के आलावा सिंद्ध भैरव भवानी,डोकरदेव, भंगाराव की मूर्ति भी है।
देवी का इतिहास-माँ अंगार मोती माता को मां विंध्यवासिनी देवी के समकालीन माना जाता है। कहा जाता है सप्त ऋषियों के आश्रम से जब दोनों देवियों निकलकर अपने-अपने स्थान पर प्रतिष्ठित हुई। तब महानदी के उत्तर दिशा में धमतरी शहर की ओर देवी विंध्यवासिनी का और महानदी के दक्षिण दिशा में नगरी-सिहावा की ओर देवी अंगारमोती का अधिकार क्षेत्र निर्धारित हुआ। चंवर से सन् 1937 में देवी की मूल प्रतिमा चोरी हो गई। पर चोर उनके चरणों को नहीं ले जा सका। जो आज भी मौजूद है। चोरी के देवी की नई प्रतिमा मूल चरणों के बगल में स्थापित की गई। सन 1976 में जब गंगरेल बांध बनकर तैयार हो गया, तब चंवर समेत आसपास के दर्जनों गांव डूब में आ गए। जिसमें देवी का मंदिर भी शामिल था। अतः विधि विधान के साथ वहां से हटाकर गंगरेल बांध के वर्तमान स्थल पर उनकी प्राण प्रतिष्ठा की गई। यहां देवी की प्रतिमा विशाल वृक्ष के नीचे बने चबूतरे पर स्थापित है और वनदेवी होने के कारण उनकी पूजा खुले स्थान पर ही होती है। माता की महिमा का ही प्रताप है कि अब चारभाठा, गीतपहर, अंवरी, माकरदोना, हटकेशर समेत कई अन्य स्थानों पर भी भक्तों ने मंदिर बनाकर उनकी पूजा-अर्चना शुरु कर दी है। पुजारी देव सिंह ध्रुव के अनुसार 7 पीढ़ियों से उनका परिवार माँ अंगार मोती की सेवा कर रहा है।
पुजा अर्चना – प्रत्येक सप्ताह के रविवार एवं शुक्रवार को माता जी की विशेष पूजा अर्चना होती है।
माता आपकी मनोकामना को पूर्ण करे
!! जय माता दी !!
हमने यूट्यूब में मां अंगार मोती माता का विडियो बनाया है जिसे देखे और चैनल को सबस्कइब जरूर करे
Youtube channel – hitesh kumar hk
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!! जय जोहार जय छत्तीसगढ़ !!
Jai mata di
Nice information
Jai maa angarmoti