रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है l जगन्नाथपुरी के रहस्य l rath yatra kyu manaya jata hai l jagganthpuri history in hindi
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रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है

रथ यात्रा कब मनाया जाता है
दोस्तों शास्त्रों के अनुसार रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीय से शुरू होती है। इस महीने रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीय तिथि रथ यात्रा मनाए जाता है।
रथ यात्रा मनाए जाने के पीछे सदियों पुराना इतिहास
दोस्तों कहा जाता हैं कि राजा इंद्रद्युम्न जो सह परिवार नीलांचल सागर के पास रहते थे जो कि उड़ीसा में है उन्हें समुंदर में एक विशालकाय लकड़ी दिखा। राजा उस लकड़ी से भगवान की मूर्ति बनाना चाहते थे। राजा के मन में जैसे यह विचार आया कि इस सुंदर लकड़ी से जगदीश की मूर्ति बनाया जाए। वैसे ही बड़े बड़ाई के रूप में स्वयं विश्वकर्मा जी प्रस्तुत हो गए। उन्होंने मूर्ति बनाने के लिए एक शर्त रखी कि मैं जिस घर में मूर्ति बना लूंगा,उसमें मूर्ति के पूरी तरह बन जाने तक कोई ना आए। राजा ने इसे मान लिया आज जिस जगह पर श्री जगन्नाथ जी का मंदिर है उसी के पास एक घर के अंदर वह मूर्ति निर्माण में लग गए। राजा के परिवारजनों को यह मालूम ना था कि वह बूढ़ा बढ़ाई कौन है। कई दिन तक घर का द्वार बंद रहने पर महारानी ने सोचा कि बिना खाए पिए वह बढ़ाई कैसे काम कर सकेगा। बढ़ाई होते हैं जो लकड़ी का काम करते हैं।
दोस्तों महारानी ने सोचा कि क्या वह बढ़ाई अब तक जीवित भी हो गया या मर गया होगा। महाराजा के द्वार खुलवाने पर वह वर्ढ़ाई कहीं नहीं मिला, लेकिन उसके द्वारा अर्ध निर्मित श्री जगन्नाथ सुभद्रा तथा बलराम की कास्ट मतलब लकड़ी की मूर्तियां वहां पर मिले लेकिन महाराजा और महारानी दुखी थे, लेकिन उसी क्षण आकाशवाणी हुई लेकिन व्यर्थ दुखी मत हो। हम इसी रूप में रहना चाहते हैं। सूचियों को दर्वे आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो। आज भी वे अपूर्ण व अस्पष्ट मूर्तियां पुरुषोत्तम पुरी की रथयात्रा और मंदिर में सुशोभित व्यक्ति श्रेष्ठ है। रथयात्रा माता सुभद्रा के द्वार की भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से श्री कृष्ण और बलराम ने अलग-अलग रातों में बैठकर करवाई थी। माता सुभद्रा की नगर भ्रमण की स्मृति में यह रथयात्रा पुरी में हर वर्ष होती है। उड़ीसा के पुरी की रथयात्रा सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। पुराणों में जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ कहा गया है।
स्कंद पुराण के अनुसार
दोस्तों पूरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलामाधव के रूप में अवतार लिया था। वह यहां सब जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। सब जनजाति के देवता होने की वजह से यहां भगवान जगन्नाथ का रूप में कब लाई देवताओं की तरह है उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर की महिमा देश में ही नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध है।
दोस्तों भगवान जगन्नाथ की यात्रा रथ यात्रा के लिए बलराम श्री कृष्ण और देवीसुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ है। उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्री कृष्ण का रथ होताहै। इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है।
पूरी में बना जगन्नाथ मंदिर भारत में हिंदुओं के चार धामों में से एक है। यह धाम तकरीबन 800 सालों से भी ज्यादा पुराना माना जाता है। भगवान जगन्नाथ का नंदी घोष रथ 45 पॉइंट 6 फीट ऊंचा बलरामजी का ताला ध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्द दलन रथ 44 पॉइंट 6 फीट ऊंचा होता है।
जगन्नाथपुरी के रहस्य
दोस्तों जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है।
इसी तरह मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है। इस चक्र को किसी भी दिशा से खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी तरफ है।
मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है। सिर नीचे की तरफ से एक एक के बाद एक प्रसाद पक्का रहता है।
मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखने पर ही आप समुंदर की लहरों से आने वाली आवाजको नहीं सुन सकते। आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुंदर की आवाज सुनाई देने लगती है। यह अनुभव शाम के समय लगता है ।
हमने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठा और उड़ते देखे हैं। जगन्नाथ मंदिर की है।बात आपको चौंकादेगी देगी कि इसके ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता है। यहां तक कि कोई हवाई जहाज भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता।
मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता। साथ ही मंदिर का पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।
दिन के किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शहर की परछाई नहीं बनती।
एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा।
आमतौर पर दिन में चलने वाली हवा समुंदर से धरती की तरफ चलती और शाम को धरती से समुंदर की तरफ चकित कर देने वाली बात यह है कि पूरी में यह प्रक्रिया उल्टी है ।
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