वट सावित्री व्रत क्या है और क्यों किया जाता है l vat savitri vrat in hindi।vat savitri vrat
नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में आपको वट सावित्री व्रत के बारे में जानकारी देंगे। यह पोस्ट आपको अच्छा लगा है इस पोस्ट को शेयर जरूर करे।
वट सावित्री व्रत क्या है

वट सावित्री व्रत एक प्राचीन हिंदू व्रत है जो महिलाओं के लिए होता है। यह व्रत सावित्री देवी को समर्पित होता है और इसे वट पूजन भी कहा जाता है। यह व्रत सफल विवाह और अधिकाधिक दीर्घायु के लिए मन्त्र जपने के लिए जाना जाता है।
वट सावित्री व्रत के दौरान, महिलाएं सम्मानित होती हैं जो अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। व्रत का विधान सरल होता है – सुबह सोते समय जल्दी उठकर स्नान करें और सभी नियमों का पालन करें। इस व्रत में, वट वृक्ष की पूजा की जाती है और सावित्री देवी को मन्त्र जप किया जाता है। व्रत का पूरा दिन उपवास रखा जाता है और शाम को सूर्यास्त के समय वट वृक्ष को प्रदक्षिणा करते हुए व्रत को खत्म किया जाता है।
वट सावित्री व्रत भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है, लेकिन सामान्य रूप से यह व्रत वैशाख शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।
वट सावित्री पूजा में क्या खाना चाहिए
वट सावित्री पूजा में उपवास करने के लिए व्रत के नियमों का पालन करना होता है और अन्य भोजन की चीजों का सेवन नहीं करना होता है। इसलिए, व्रत के दौरान आमतौर पर खाने-पीने की चीजों में से कुछ निम्नलिखित हो सकती हैं:
- फल: व्रत के दौरान फल खाना उपयुक्त होता है। सेब, अंगूर, केले आदि सभी फल व्रत के दौरान खाये जा सकते हैं।
- दूध: दूध भी व्रत के दौरान सेवन किया जा सकता है।
- द्राक्षा: द्राक्षा भी व्रत के दौरान उपयोगी होती है।
- मेवे: व्रत के दौरान मेवे भी खाए जा सकते हैं। बादाम, किशमिश, अखरोट आदि सभी मेवे उपयोगी होते हैं।
- वैसे तो व्रत में आप अपनी रुचि के अनुसार भोजन चुन सकते हैं, लेकिन आपको अपने गुरु या पंडित से भी सलाह लेनी चाहिए।
वट सावित्री व्रत की पूजा कैसे की जाती है
वट सावित्री व्रत की पूजा महिलाओं द्वारा की जाती है जो इस व्रत को मानती हैं। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत के हिंदू महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इस व्रत का उद्देश्य अपने पति की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना करना होता है। यह व्रत सोमवार को सावित्री अमावस्या से पूर्व रविवार को समाप्त होता है।
वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
- वट के पेड़ की डाल
- सावित्री देवी की मूर्ति या फोटो
- पूजा सामग्री जैसे कि रोली, चावल, कुमकुम, धूप, दीप, पुष्प आदि
वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन किया जाता है:
- स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
- सुबह उठकर सूर्योदय के समय पूजा का आरंभ करें।
- सावित्री देवी की मूर्ति या फोटो को साफ करें और उसे सावित्री देवी के अभिवादन के साथ स्थान पर रखें।
- पूजा के लिए जल, पुष्प, धूप, दीप आदि की तैयारी करें।
सत्यवान और सावित्री की कहानी
सत्यवान और सावित्री की कहानी हिंदू मिथकों में से एक है। यह कहानी महाभारत के अनुसार है।
इस कहानी में, सत्यवान एक युवक था जो वृक्षों को काटने वाले देवदूतों के बीच रहता था। एक दिन, वह जंगल में घूमते हुए सावित्री नाम की लड़की से मिलता है और उससे प्यार हो जाता है। दोनों शीघ्र ही शादी करते हैं।
सावित्री की माँ, सत्यवान के वृक्षों काटने वाले काम को देखती है और उसे अल्पायु कहती है कि वह सत्यवान के साथ जीवित नहीं रहेगी। सावित्री उस दिन से ही सत्यवान के लिए चिंतित हो जाती है।
एक दिन, सत्यवान को उसकी मृत्यु का समाचार सुनाया जाता है और वह बुरी तरह से बीमार हो जाता है। सावित्री ने देखा कि यमराज उसे ले जा रहे हैं। उसने यमराज से वादा किया कि वह उसकी साथ चलेगी। यमराज ने इसका असंगत जवाब दिया, लेकिन सावित्री उन्हें अपने स्वयं के लिए लेने के लिए बार-बार विनती करती रही।
अंत में, यमराज ने सावित्री से पूछा कि वह क्या चाहती है। सावित्री ने कहा कि वह सत्यवान के साथ शादी करना चाहती है और उसके साथ उसके पिता के राज्य का प्रभार भी संभालना चाहती है। यमराज ने उससे कहा कि वह चाहती हो तो सत्यवान की जान बचा सकती है, लेकिन सत्यवान का जीवन अल्प होगा। सावित्री ने उसे यह स्वीकार कर लिया और उसने एक बार फिर से सत्यवान के जीवन के लिए यमराज से विनती की। अंततः, यमराज ने उसे अपनी सभी इच्छाओं को पूरा करने की अनुमति दे दी। इस तरह सावित्री ने सत्यवान को बचा लिया और वे दोनों सुखी जीवन बिताने लगे।
वट सावित्री व्रत में खाना कब खाना चाहिए
इस व्रत में भोजन का समय सूर्योदय से पहले होना चाहिए और उसके बाद समय बिताना चाहिए। भोजन में सभी प्रकार के अनाज, फल, सब्जियां, दूध, घी आदि शाकाहारी खाद्य पदार्थ शामिल होने चाहिए। अनाज व सब्जियों में व्रत संबंधित सामग्री जैसे साबूदाना, कुटू, सिंघाड़ा, अमरंथ आदि का प्रयोग किया जाता है।
इस व्रत के दौरान उन्हें ज्यादा से ज्यादा ताजा फल खाना चाहिए। भोजन के समय को लेकर ज्यादा सख्त नियम नहीं होते हैं, लेकिन सूर्योदय से पहले खाना शुरू करना चाहिए।
वट सावित्री व्रत की आरती
वट सावित्री व्रत का महत्व हिंदू धर्म में बहुत उच्च माना जाता है और इस व्रत के दौरान वट वृक्ष की पूजा की जाती है। इस व्रत की आरती विधिवत रूप से भावुकता और आस्था के साथ गाई जाती है।
वट सावित्री व्रत की आरती के लिए, सबसे पहले अपने दिल में सावित्री देवी को ध्यान में रखें। फिर गुरुवार को सुबह-सुबह उठकर नहाकर सावित्री व्रत का पालन करें। व्रत के दौरान भोजन का नियम व्रत के अनुसार होता है।
आरती शुरू करने के लिए, वट वृक्ष की मूर्ति के सामने जाएं और दिया जलाएं। फिर अपने दोनों हाथों को जोड़ें और ध्यान से इस आरती के शब्दों को गाएं:
जय सावित्री माता, सभी जग की माता,
वीरता से सम्पन्न, वीरता से सम्पन्न,
वीरता से सम्पन्न, जग की जीत करने वाली।
जगजननी जय जय सावित्री माता,
सावित्री जय जय सावित्री माता।
दुःख दर्द मिटाओ, माँ सावित्री सबको आशा दो,
दुःख दर्द मिटाओ, माँ सावित्री सबको आशा दो।
मन की शांति दो, माँ सावित्री, तुम सबका भला करो।
हर मनोकामना पूरी करो, तुम सबका भला करो।
जय सावित्री माता, सभी जग की माता,
वीरता से सम्पन्न, वीरता से सम्पन्न,
वीरता से सम्पन्न, जग की जीत करने वाली।
जगजननी जय जय सावित्री माता,
सावित्री जय जय सावित्री माता।
आरती को गाने के बाद, वट वृक्ष की मूर्ति को प्रणाम करें और व्रत के अनुसार भोजन करें। इस व्रत के दौरान वट वृक्ष की पूजा के अलावा, सावित्री देवी की पूजा भी की जाती है।
FAQ –
वट सावित्री व्रत क्या है?
वट सावित्री व्रत एक हिंदू धार्मिक व्रत है, जो सावित्री देवी की पूजा एवं वट वृक्ष की पूजा के साथ मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है।
वट सावित्री व्रत कब मनाया जाता है?
वट सावित्री व्रत वर्ष के अगले महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि माह मई और जून के बीच में पड़ती है।
वट सावित्री व्रत कैसे मनाया जाता है?
वट सावित्री व्रत के दौरान, महिलाएं सावित्री देवी की पूजा एवं वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इसके अलावा व्रत के नियमों के अनुसार भोजन करती हैं और वट वृक्ष की मूर्ति के समक्ष प्रणाम करती हैं।
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