एक पत्थर पर टिकी हुई है बहादुर कलारिन की माची,चिरचारी (जिला- बालोद) (छ.ग)

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हेलो दोस्तों मेरा नाम है हितेश कुमार इस पोस्ट में मैं आपको बहादुर कलारिन की माची के बारे में जानकारी देने वाला हूं।

       बहादुर कलारिन  की माची, चिरचारी (जिला- बालोद)
एक पत्थर पर टिकी हुई है बहादुर कलारिन की माची,चिरचारी (जिला- बालोद) (छ.ग)

पता – यह स्मारक बालोद से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर बालोद- पुरुर रोड पर चिरचिरी ग्राम में स्थित है।

स्तम्भो पर आधारित मंडप – वास्तव में यह प्रस्तर- स्तम्भो पर आधारित मंडप या मढिया है जो जीर्ण – शीर्ण स्थिति में हैं।

एक पत्थर पर टिकी हुई है बहादुर कलारिन की माची,चिरचारी (जिला- बालोद) (छ.ग)

15 वीं शती ईस्वी में निर्मित – यह प्रस्तर निर्मित संरचना लगभग 15 वीं शती ईस्वी में निर्मित हुई प्रतीत होती हैं।

पुरातत्व विभाग की देख रेख में – बहादुर कलारिन की माची पुरातत्व विभाग की देख रेख में सुरक्षित है यह स्मारक।

माची का आर्किटेक्चर – पुरी तरह से पत्थरों से बना हुआ है माची का आर्किटेक्चर।

एक पत्थर पर टिकी हुई है बहादुर कलारिन की माची,चिरचारी (जिला- बालोद) (छ.ग)

पिलरनुमा आकृति की संरचना – यह माची बिना किसी जोड़ के सिर्फ पत्थरों पर ही टिकी हुई पिलरनुमा आकृति की संरचना हैं।

600 सौ साल पुरानी माची – कहा जाता है कि यह माची 600 सौ साल पुरानी है। माची में आज भी शराब के लिए रखे गए मटकों की जगह आज भी सुरक्षित बनी हुई हैं।

बहादुर कलारिन की माची की कहानी – कथा के आधार पर एक हैहायवंशी राजा शिकार खेलने हेतु इस घनघोर जंगल में आये थे। वहां राजा की मुलाकात बहादुर नामक युवती से हुई। राजा बहादुर कलारिन की सुंदरता पर मोहित गए और उसके साथ गंधर्व विवाह कर लिया। इसके बाद वह गर्भवती हो गई और उसने एक शिशु को जन्म दिया। जिसका नाम कछान्चा रख दिया। राजा कलारिन से रानी बनाने की बात कहकर वहा से चला जाता है और फिर कभी नहीं लौटता है। बहादुर कलारिन का पुत्र युवा होने पर उसने मां से अपने पिता का नाम पूछा और मां के द्वारा नाम नहीं बतलाए जाने पर वह सभी राजाओं से धृणा करने लगा। उसने एक सैन्यदल गठित किया और उसने समीपस्थ अन्य राजाओं को हराकर उनकी कन्या को बन्दी बना कर अपने घर ले आया और बंदिनी राजकुमारियों को अन्न कूटने एवं पीसने के काम में लगा दिया। बहादुर कलारिन ने अपने पुत्र से उनमें से किसी एक कन्या से शादी करके अन्य सभी राजकुमारियों को छोड़ देने का आग्रह किया किन्तु उसने अपने मां की आज्ञा नहीं मानी। तत्पश्चात बहादुर कलारिन ने भोजन में जहर मिलाकर अपने पुत्र को मार डाला और कुएं में कूदकर प्राण त्याग दिए।उनकी याद में इस ध्वस्त मंदिरावशेष मण्डप को बहादुर कलारिन की माची कहा जाता है। इस कथा की पुष्टि में ग्रामवासी लोग चट्टानों के सपाट सतह पर बने हुए गडढे दिखलाते है। 

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   जय जोहार जय छत्तीसगढ़ 

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