छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक गीत – chhattisgarh lok Geet

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हेलो दोस्तों मेरा नाम है हितेश कुमार इस पोस्ट में मैं आपको छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक गीत के बारे में जानकारी देने वाला हूं।

छत्तीसगढ़  के लोक गीत
छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक गीत - chhattisgarh lok Geet

प्रस्तावना – छत्तीसगढ़ में लोक गीतों का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना कि छत्तीसगढ़  का। छत्तीसगढ़ के लोक संगीत में आर्य, आदिम तथा मंगोल संगीत से मिलते- जुलते अंश मिलते है।छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के मुड़िया अपने आकर्षक लोक गीतों के लिए विख्यात है।छत्तीसगढ़ में जो लोक गीत गाए जाते हैं वह उस अंचल के अनुसार ही बनाएं जाते हैं। इससे भी उस अंचल के प्राचीन रहन – सहन, रीति- रिवाज का परिचय इन लोक गीतों के माध्यम से ही मिलना सम्भव हो पाता है। वैसे लोक गीतों का सम्बन्ध बहुत कुछ पुरानी चली आ रही परम्पराओं पर ही आधारित होता है।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक गीत निम्नलिखित है –

1. पंडवानी
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छत्तीसगढ़ का यह विश्व प्रसिद्ध लोक गीत महाभारत के विभिन्न वीरता प्रसंगों पर आधारित है। गायक तम्बूरा लेकर गाता है तथा साथ ही साथ ही साथ वह अभिनय भी करता है। गायक के अन्य कलाकार साथी वाद्य यंत्रों की सहायता से सुर- ताल के संयोजन के साथ मुख्य गायक के साथ गाते भी है, और गीत के बीच- बीच में हुंकार भी भरते रहते हैं।

   2. लोरिक चंदा

यह उत्तर भारत की लोकप्रियता प्रेम लोकगाथा है। इसमें लोरिक और चंदा के प्रसंग को    विशिष्टता के साथ गाया जाता है। इसे छत्तीसगढ़ में चंदैनी गायन कहा जाता है। लोरिक कि शैली भी मूलतः गाथात्मक है।लोरिक चंदा छत्तीसगढ़ में नृत्य गीत के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह नृत्य गीत रात भर चलता है। बीच- बीच में विदूषक जलती मशाल के साथ अपनी प्रस्तुति देते हैं।चंदैनी नृत्य में टिमकी तथा ढोलक कि संगत की जाती है।

  3. ढोलामारू
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यह मूलतः राजस्थान की लोकगाथा है किन्तु यह सम्पूर्ण उत्तर भारत में प्रचलित है। मध्य प्रदेश के मालवा, निमाड़ तथा छत्तीसगढ़ के बुंदेलखंड में इसे गाया जतर है। इसमें ढोला और मारू के प्रेम कथा को चमत्कार ग्रामीण यंत्र – तंत्र के साथ लोक शैली में पाई जाती है। छत्तीसगढ़ में ढोलामारू को प्रेम गीत के रूप में देखा जाता है। छत्तीसगढ़ ढोलामारू कथा में मारू का वर्णन अधिक होता है।ढोलामारू की प्रेमकथा का त्रिकोणात्मक पहलू कथा को रोमांचकारी बनाता है। कथा में स्थानीय छत्तीसगढ़ी संस्कृति के रंग भी उपस्थित होते हैं।

 4. बांस गीत
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यह मूलतः एक गाथा गायन है जिसमे रागी और वादक होते हैं। इसमें गाथा गायन के साथ मोटे बांस के लगभग एक मीटर लंबे सजे- धजे बांस नामक वाद्य का प्रयोग होता है। इसी कारण इसे बांस गीत कहा जाता है। इस गीत में गान के बीच में बांस के वाद्य  को बजाया जाता है, जिसे फूकने से भारी भोंभो की आवाज निकलती है, जो संगीत के साथ कथाएं का माहौल बनाती है।बांस की खुरदुरी किन्तु प्रभावी आवाज का अपना ही प्रभाव है। छत्तीसगढ़ में इसे प्राय: राऊत जाति के लोग गाते है। इसके माध्यम से करुण गाथा गायी जाती हैं।बांस गीत की कथाओं में सित बसन्त,मोरध्वज, कर्ण आदि कथा प्रमुख हैं।

  5. घोटुल पाटा

छत्तीसगढ़ के अनेक आदिवासी क्षेत्रो में मृत्यु गीत गाने की परंपरा है।मृत्यु के अवसर पर मुड़िया आदिवासियों में घोटुल पाटा के रूप में इसकी अभिव्यक्ति होती है। इसे बुजुर्ग व्यक्ति गाते है जो मुख्यत राजा जोलोंग साय को कथा के साथ प्रकृति के अनेक जटिल रहस्यों के समाधान प्रस्तुत करते हैं।

  6. बिरहा
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यह बुंदेलखंड का प्रतिनिधि नृत्य गायन है। यह नृत्य बघेलखंड की लगभग सभी जातियों में प्रचलित है इसका कोई निश्चित समय नहीं होता है। किन्तु गोड़ एवं बैगा आदिवासियों में बिरहा गाने की प्रथा विवाह एवं दीपावली के अवसर पर देखी जाती है। यह एक शृंगार परक बिरह गीत है। बिरहा में प्राय: लड़की के विरह का वर्णन होता है।थे प्रशन पूछने के अंदाज से ऊंची टेर लगाकर गाया जाता है। बिरहा प्राय: पुरुषों द्वारा व कभी – कभी स्त्री- पुरुष दोनों गाते है। इस अवस्था में स्त्री – पुरुषों के मध्य सवाल जवाब होता है, साथ- ही- साथ नृत्य किया जाता है। बारात में बिरहा गाने की होड़ देखी जा सकती हैं।

  7. पंथी गीत
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यह छत्तीसगढ़ के सतनामी जाति का परम्परागत नृत्य गीत है। गुरु घासीदास के पंथ से पंथी नाच का नामकरण हुआ है। विशेष अवसरों पर सतनामी जैतखाम की स्थापना करते हैं और उसके आस पास गोले घेरे में नाचते- गाते हैं । इसकी शुरुआत देवताओं कि स्तुति से होती है। गायन का प्रमुख विषय गुरु घासीदास का चरित्र होता है। पंथी नृत्य में अध्यात्मिक सन्देश के साथ मानव जीवन की महत्ता भी होती है।

   8. भरथरी गीत
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भरथरी एक लोकगाथा है। इसमें राजा भरथरी और रानी पिंगला कि कथा का गायन होता है।भरथरी के शतक और उनकी कथा ने लोक में पहुंचकर एक नयी और ऊर्जा और जीवंतता प्राप्त की है।छत्तीसगढ़ में भरथरी गायन की परंपरा बहुत पुरानी है जो एक लोक गायन शैली के रूप में प्रतिष्ठित है।भरथरी  गायन प्राय: नाग पंथी गायक करते है। सारंगी या इकतारे गाते हुए योगियों को अक्सर देखा जाता है लेकिन छत्तीसगढ़ में भरथरी गायन के इस रूप के अलावा महिला कंठो के माध्यम से इसने काव्यात्मक और  सांगीतिक धरातल पर एक नया रूप और रंग ग्रहण किया है। श्रीमती सुरुज बाई खांडे भरथरी गाथा गायन की शीर्ष लोक गायिका है। श्रीमती सुरुज बाई खांडे की गायन शैली में एक मौलिक स्वर माधुर्य और आकर्षक है।

  9. ददरिया
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यह मूलतः एक प्रेम गीत है जिसमे शृंगार की प्रधानता होती है।ददरिया दो- दो पंक्ति के स्फुट गीत होते है, जो लोक- गीती काव्य के श्रेष्ठ उदाहरण होते है।ददरिया गीत स्त्री और पुरुष मिलकर अथवा अलग- अलग भी गाते है। जब स्त्री और पुरुष गाते हैं तब ददरिया सवाल- जवाब के रूप में गाया जाता है। स्त्रियों के दो दल भी संवादात्मक ददरिया गा सकते हैं।ददरिया की लोकगीत इतनी लोकप्रिय और मधुर होती है कि कोई व्यक्ति उसे आसानी से गा सकता है। हर ददरिया को उसकी दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द अथवा स्वर को पकड़कर गाया जाता है, जिसे छोर कहते है। ददरिया किसी भी समय गाया जा सकता है। महुआ बीनते हुए, धान रोपते हुए, धान काटते हुए, राह में चलते हुए, चक्की पिसते हुए आदि कभी भी किसी समय ददरिया गीत गाया जा सकते हैं।ददरिया गीतों का विषय जीवन की कोई बात हो सकती है जिसमे युवा मन के प्रेम शृंगार की चर्चा हो।                       

   10. सोहर गीत
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जन्म संस्कार पर विषयक गीत को सोहर गीत कहा जाता है । यह गीत जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर गाया जाता है।

    11. बरूआ गीत

उपनयन संस्कार के समय गाए जाने वाले गीत को बरूआ गीत कहा जाता है।इस गीत के द्वारा बरूआ अपने सगे सम्बन्धीयो से भिक्षा कि याचना करता है।

  12. गौरा गीत
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यह महिलाओं द्वारा नवरात्रि के समय मां दुर्गा की स्तुति में गाया जाने वाला लोक गीत है।

 13. करमा गीत
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यह छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का मुख्य लोक गीत है। करमा नृत्य के साथ गाए जाने वाले गीत को करमा गीत के नाम से जाना जाता है।

14. सुआ गीत
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यह गीत स्त्रियों के विरह को व्यक्त करता हुआ सा प्रतीत होता है।इस गीत की प्रत्येक पंक्ति में स्त्रियां सुअना को संबोधित करते हुए अपनी आंतरिक वेदना को व्यक्त करती है।

15. राऊत गीत
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छत्तीसगढ़ की राऊत जाति स्वयं को भगवान श्री कृष्ण का वंशज मानती है। गोवर्धन पूजा के दिन इनका एक नृत्य गीत प्रारंभ होता है जिसे राऊत गीत कहते है।

16. गम्मत गीत

यह गीत राज्य में गणेश महोत्सव के समय गाया जाता है। इस गीत में देवी- देवताओं की स्तुति की जाती है।

17. नगमत गीत

नाग पंचमी को गाये जाने वाले इस लोक गीत को गुरु की प्रशंशा के साथ ही नाग देवता का गुणगान तथा नाग दंश से सुरक्षा को गुहार में गाया जाता है।

18. ढोंलकी गीत
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ढोलक बजाकर केवल महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले इस लोक गीत में भगवान राम और श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया जाता है।

19. देवार गीत

राज्य की देवार जाति में गाया जाने वाला यह नृत्य गीत लोक कथाओं पर आधारित होता है।

  20. बारहमासी गीत

इस गीत को गाने की शुरुआत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह में होती है। इस गीत में प्रत्ततुओ का वर्णन एवं उसकी महिमा व्यक्त की जाती है।

    21. बैना गीत
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तंत्र – मंत्र के संदर्भ में गाया जाने वाला यह लोकगीत देवी- देवताओं की स्तुति में उन्हें प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है।

 22. लेंजा गीत

 यह बस्तर कर आदिवासी बहुल क्षेत्र का प्रमुख लोक गीत है।

23. रैला गीत

यह मुरिया जनजाति का प्रमुख लोक गीत है।

   24. बार नृत्य गीत

यह कंवर जनजाति का नृत्य गीत है।

 25. बिलमा गीत

 यह बैगा जनजाति का मिलन नृत्य गीत है।

 26. रीना नृत्य गीत

यह गोंड तथा बैगा जनजातियों की महिलाओं द्वारा दीपावली के समय गाया जाने वाला लोक गीत है।

27. दहकी गीत

यह होली के अवसर पर अश्लीलता पूर्ण परिहास में गाया जाने वाला लोक गीत है।

28. भड़ौनी गीत

यह विवाह के समय हंसी – मजाक करने के लिए गाया जाने वाला लोक गीत है।

 29. जंवारा गीत
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यह नवरात्रि के समय गाया जाने वाला माता का गीत है।

  30. धनकुल

यह बस्तर क्षेत्र का प्रमुख लोक गीत है।

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🙏   जय जोहार जय छत्तीसगढ़ 🙏

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