पशुपतिनाथ व्रत, एक प्रमुख हिन्दू व्रत है जो भगवान शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। इस व्रत के अनुसार, सोमवार को इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति की अभिलाषाएँ पूरी होती हैं और उसका जीवन सुख-शांति से भर जाता है।
पशुपतिनाथ व्रत की कथा
एक समय की बात है एक नगर में एक धनवान साहूकार रहता था। वह धनी था, परंतु उसकी आकांक्षा केवल एक पुत्र प्राप्त करने की थी। वह सोमवार के दिन शिव जी का व्रत और पूजन किया करते थे, जिससे वह भगवान शिव के आशीर्वाद की कामना करते थे।
एक दिन, माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, “हे भगवान, यह साहूकार आपका अद्वितीय भक्त है, जो आपके प्रति निष्ठा और पूजन करता है। क्या आप उसकी मनोकामना पूरी करने के लिए कुछ कर सकते हैं?”
भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा, “इस संसार में हर व्यक्ति का कर्म उसके भविष्य को निर्धारित करता है। हम उसकी आकांक्षाओं को पूरा कर सकते हैं, परंतु सिर्फ एक शर्त पर।”
माता पार्वती ने पूछा, “कौन सी शर्त है, हे भगवान?”
भगवान शिव ने हँसते हुए कहा, “वह पुत्र केवल बारह वर्ष तक ही जीवित रहेगा।”
माता पार्वती की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उस साहूकार को एक सुंदर पुत्र प्रदान किया, लेकिन उसकी आयु सिर्फ बारह वर्ष तक थी। उसके पुत्र की जन्म के बाद, साहूकार के घर में खुशियाँ छाई, परंतु , पर उसे कोई प्रसन्नता नहीं थी.
हालांकि वह पहले की तरह ही भगवान शिव जी का व्रत और पूजन करता रहा. जब लड़का ग्यारह साल का हो गया तो उसने पढ़ने के लिए पुत्र को काशी भेज लिया. साहूकार ने साथ में बालक के मामा को भी भेजा. साहूकार ने अपने सालों से कह दिया था कि रास्ते में निजी स्थान पर भी जाओ. यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाओ.मामा और भांजे यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाओ जाते जाते एक राज्य में पहुंच गए. जहां राजा की कन्या का विवाह था, लेकिन बारात लेकर आने वाले राजा का लड़का काना था.
राजकुमार के पिता को चिंता थी. की वर को देखकर कन्या शादी के लिए मना न कर दे. तभी राजकुमार के पिता अति सुंदर साहूकार के लड़के को देखकर सोचा क्यों न शादी तक इस लड़के को वर बना दिया जाए.
साहूकार के लड़के के साथ विवाह कार्य संपन्न हो गया.लड़के ने ईमानदारी दिखाते हुए शादी के दौरान, राजकुमारी के चुनरी के पन्ने यानी शादी के जो गांठ बांधा जाता है, उस पर लिख दिया कि तेरह विवाह तो मेरे साथ हुआ है. राजकुमार के साथ उनको भेजेंगे, वह एक आंख से खाना है और मैं काशी पढ़ने जा रहा हूं.
सच्चाई जानकर लड़की ने बरात के साथ जाने से मना कर दिया. काशी पहुंचकर साहूकार के लड़के ने पढ़ाई शुरू कर दिया. जब लड़के की आयु 12 साल की हो गई 12वे साल के दिन लड़के ने मामा से कहा कि तबीयत सही नहीं लग रही है, फिर अंदर जाकर सो गया.
सोने के बाद लड़के के प्राण निकल गए. जब मामा को पता चला तो वे ज़ोर ज़ोर से रोने लगे. संजोगवश उसी समय शिव और पार्वती उधर से जा रहे थे.
रोने की आवाज़ सुनकर माता पार्वती का हृदय व्याकुल हो गया उन्होंने कहा कि बालक जीवित करिए वरना इसके माता पिता तड़प तड़प कर मर जाएंगे.
माता पार्वती के आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन वरदान दिया. जिससे लड़का जीवित हो गया.लड़का और मामा, जग और ब्राह्मणों को भोजन कराते अपने घर की ओर चल पड़े. वे उसी रास्ते से लौटे. जिस राज्य में साहूकार के लड़के और राजकुमार की शादी हुई थी. राजा ने लड़के को पहचान लिया और राजकुमारी के साथ उसकी विदाई कर दी. जब लड़का घर पहुंचा तो माता पिता घर की छत पर बैठे थे.
और यह प्रण कर रखा था कि अगर पुत्र नहीं लौटता, तो वे अपने प्राण त्याग देंगे. लड़के को देखकर सेठ ने आनंद के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगी. जो भी पशुपतिनाथ व्रत को करता है और इस कथा को पढ़ता है जो उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
FAQ-
व्रत के पालन से क्या फायदा होता है?
पशुपतिनाथ व्रत के पालन से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति, साहस और ईमानदारी की महत्वपूर्ण सिख मिलती है। यह उसके मानवता और आत्म-समर्पण में सुधार करने में मदद करता है।
क्या पशुपतिनाथ व्रत का कोई विशेष तरीका होता है?
पशुपतिनाथ व्रत के दौरान व्रती शिवलिंग पर जल चढ़ाकर भगवान शिव की पूजा करते हैं। वे विशेष रूप से ध्यान करते हैं और उनके उपासना में लगे रहते हैं।
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