क्या है आदिपुरुष मूवी की स्टोरी। आदिपुरूष movie review in hindi। आदिपुरुष movie cast

आदिपुरुष movie story 2023

क्या है आदिपुरुष मूवी की फूल स्टोरी। आदिपुरूष movie review in hindi।  आदिपुरुष movie cast

आज हम एक्सप्लेन करने वाले है रामायण की तर्ज पर बनी फ़िल्म आदिपुरुष की जिसे हम नेक्स्ट जनरेशन का रामायण भी बोल सकते है।अगर आप लोगो ने फिल्म का ट्रेलर देगा होगा तो आपके अंदर भी फिल्म को देखने की काफी जिज्ञासा होगी।

फिल्म में बहुत सारे अच्छे चीजे भी है और साथ ही साथ कही कही पर आप को कुछ कमी महसूस होगा लेकिन इन सब बातों को इस पोस्ट के आखिरी में डिस्कस करेगे।तो जलिए शुरू करते है फिल्म अदिपुरुष को एक्सप्लेन करना।

मुवी की शुरुवात में हम देखते है की कुछ एनिमेटेड पिक्चर को दिखते हुए भगवान श्री राम का गुणगान किया जाता है और उसके बाद सुरु होता है फिल्म का सबसे बेहतरीन गीत जो फिल्म की प्राण है। गीत का नाम है “राम सिया राम, सिया राम जय जय राम” इस गीत को सुनकर आप सच में भक्ति के सागर में डूब जाएंगे इस गीत में भगवान राम के जीवन गाथा को दिखाया गया है जिसमे रामचरित मानस की रचना करने वाले तुलसीदास जी,उसके बाद राम के गुरु वशिष्ठ मुनि को दिखाया जाता है जहां राम जी ने शिक्षा प्राप्त किया,उसके बाद सीता स्वयंवर और उसके बाद राम जी के 14 वर्ष वनवास, केवट प्रसंग और राम जी के चरण पादुका लेकर अयोध्या आते भरत जी का सुंदर चित्रण इस गीत में ही प्रस्तुत कर दिया जाता है।

मुवी में जो किरदार आप देखेंगे उसको कोई विषेश रूप नही दिया गया है सामान्य मानव जैसे उन्हें दिखा गया है।अगर आप ने रामानंद सागर का रामायण देख हैं तो यह फिल्म आप को अधूरा लग सकता है।इस फिल्म में किरदारों को मुख्य नाम की जगह अलग अलग नामों से संबोधित किया गया है जिससे मुवी में ओ लगाव नहीं बन पाया है।

अब हमे दिखाया जाता है रावण को जो बर्फीले पहाड़ों में तपस्या कर रहा है। फिर वहां ब्रम्हा जी  प्रगट होते है जो रावण को कहता है अमरत्व छोड़कर कोई भी वरदान मांग लो क्योंकि जिसका जन्म हुआ है उसका मृत्यु निश्चित है।

लेकिन रावन कुछ नही बोलता फिर ब्रम्हा जी रावण को ऐसा वरदान देते है जो अमरत्व के सामान ही है।

ब्रम्हा जी कहते है की मैं तुम्हे ऐसा वरदान देता हुं, ना दीन में ना रात में ना धरती में ना आकाश में,ना जल पे ना वायु में, ना किसी देव या ना किसी दानव से तुम्हारी मृत्यु नही हो सकती।।

वरदान मिलते ही रावण वापस हस्ते हुए जाने लगता है जहां हमे रावण के 10 सरो को दिखाया जाता है।

अब हमे दिखाया जाता हैं कई वर्षो बाद जहां माता जानकी वनवास के दौरान एक गुफा में निवास करती है। इस मूवी में सीता जी को जानकी नाम से सम्बोधित किया जाता है। जैसे ही वह गुफा से बाहर निकल रही होती है जहां शेष (लक्ष्मण )जी अपने तलवार को धार दे रहे होते है।

माता जानकी बादल को देखते हुऐ अपनी देवर से कहती है की शेष ये बादल मुझे सही नहीं लग रहे है।

उसके बाद शेष (लक्ष्मण) जी बोलते है की बदलो से क्या डरना।

माता जानकी को संदेह होता है उसके बाद हमे एक एनिमेटेड राक्षस को दिखाया जाता है जिसके साथ और छोटे छोटे बहुत सारे उड़ने वाले राक्षस होते है।

माता जानकी की बातो को गौर करते हुए शेष (लक्षण)जी गुफा में बाण चलाकर सुरक्षित कर देते है।

थोड़े देर में उड़ने वाले राक्षस उस गुफा के सुरक्षा चक्र से टकराने लगते है लेकिन काफी प्रयास के बाद भी उस सुरक्षा घेरे को तोड़ नही पाते।

तभी जानकी जी शेष से राघव के बारे में पूछती है जिसपे शेष बोलता है की राघव ज्वाला है। और ये राक्षस पतंगे है ज्वाला के समाने ये कहा टिक सकते है।फिल्म में राम जी को राघव के नाम से सम्बोधित किया गया है।

फिर अगले ही सीन में एक नदी दिखाया जाता है जिसके ऊपर हजारों लाखों की संख्या में राक्षस उड़ रहे है। उसी नदी के अंदर राम जी को ध्यान मुद्रा में बैठे दिखाया जाता है।

राघव को राक्षसो का अनुभव होते ही ओ नदी से बाहर आते है जहां ओ देखते है की उसके उपर हजारों की संख्या में राक्षस उड़ रहे है और मुख्य राक्षस नदी के दुसरे तरफ खड़ा है। उड़ने वाले राक्षस राघव के उपर हमला करते है लेकीन कुछ राक्षस को हाथो से मारने के बाद ओ अपने धनुष बाण के तरफ भागते हैं जो नदी के एक किनारे में रखा हुआ है।

जैसे ही धनुष बाण उनके हाथों में आता है एक एक करके सभी राक्षसो को खत्म करने लगते है।

अब राघव का मुख्य राक्षस से लड़ाई होता हैं जिसमे राघव उस राक्षस का अंत कर देता है और हम देखते है की मुख्य राक्षस के मरते ही उड़ने वाले बाकी राक्षस भी अपने आप नष्ट होने लगते है।

अब नेस्ट सीन दिखाया जाता है लंका का जो काले रंग का दिखाया गया है जहां रावण शिवलिंग के सामने बैठ कर वीना बजाते हुई शिव जी का स्तुति कर रहा है। वहां का सीन अति सुंदर है जहां शिवालिंग में निरंतर उपर से पानी गिर रहा है और आस पास की दीवारों में रावण का मूर्ति बना है जो रावण के साथ मिलकर शिव का स्तुति कर रहे है।

वही हम देखते है इस स्तुति के दौरान एक स्त्री को दिखाया जाता है जो अपना चेहरा ढक कर रावण की लंका में प्रवेश करती है।

हम देखते है की रावण शिव की स्तुति में इतना मगन है की वीना की तार से उसके उंगली कट चुके है जिसमे से निरंतर खून बह रहे है।और वीना बजाते बजाते उसका तार टूट जाता है। और रावण शिवलिंग से क्षमा मागता है।

अब देखते हैं की जो औरत सिर ढक कर लंका में प्रवेश की थी ओ शिव स्तुति वाले स्थान में रावण के सम्मुख रोते हुऐ खड़ी है।

अब हमे पता चलता है की ओ रावण की बहन सुर्पनखा है रावण उससे पुछता है की तुमने चेहरा क्यू ढका है।

सुर्पनखा रावण को भड़काते हुए बोलते है की क्या आज भी तुम मेरे वही भाई हो जिसने मेरे प्रतिसोध में कुबेर की लंका छीनी।।

रावण बोलता है मैं आज भी वही रावण हूं सुर्पनखा, ये सुनकर

सुर्पनखा अपने चेहरे से कपड़ा हटाती हैं।

हम देखते है यहां सुर्पनखा की नाक कट चुकी है। उसके बाद कहानी पीछे चली जाती है जहां सुर्पनखा रावण को बताती है की उसके साथ क्या हुआ।

हम देखते है की भगवान राम एक झरने से नहाकर बहार आ रहे है जिसे देखकर सुर्पनखा मोहित हो जाती है और राम जी को पतिवरण करती है।

इस पर राम जी कहते है की मैं विवाहित हूं। मुझे माफ कीजिए ये कहकर वहा से चले जाते है।जिससे सुर्पनखा जानकी के ऊपर क्रोध वश हमला कर देती है। जिसे देख कर शेष (लक्ष्मण) जी सुर्पनखा का नाक बाण से काट देते है।

अब सीन सिफ्ट होता है रावण के पास, जहा रावन सुर्पनखा से पुछता है ऐसा कोन है जिसके लिए रावण की खूबसूरत बहन को ठुकरा दिया गया। फिर  जवाब देती है जानकी राघव (राम) की पत्नी त्रिलोग की सबसे सुंदर स्त्री। माता जानकी की खुबसूरती के बारे में बताती है और कहती है की जानकी का स्थान उस जंगलों में नही है बल्कि रावण की लंका में है।रावण उसकी बात मान लेता है। और सुर्पनखा की बाते सुनकर माता जानकी पर मोहित हो जाता है।

अगले सीन में हम देखते है माता जानकी और राघव (राम)जी को जो बांस की नाव में नदी में विचरण कर रहे है जहां का नज़ारा अति मनोहक है। माता जानकी राघव से कहती है की आपको कुछ कहना है तो कह दीजिए राघव कहते है की जानकी तुम्हारा स्थान इन जगलो में नही महलों में है अब भी समय है तुम लौट जाओ।

इस पर माता जानकी बोलती है की जहां मेरे राघव है वही मेरा महल है। आपकी परछाई आपका साथ छोड़ सकती है लेकीन आपकी जानकी नही।

उसके बाद फिल्म का तीसरा गाना यहां चलता है जिसका नाम है “मैं हूं बाहर बाहर मेरे भीतर तुझको पता हूं।

इस गाने के आखिरी में जानकी को स्वर्ण मृग दिखाई देता है और वह बोलती है ऐसा स्वर्ण मृग किसी ने नही देखा जब हम अयोध्या जायेंगे तो इसे साथ ले जायेंगे।

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जिसे पकड़ने के लिए राघव स्वर्ण मृग के पिछे भागता है। और एक जगह ऐसा आता है जहां ओ मृग झाड़ियों में छुप जाता है और जोर जोर से शेष शेष चिल्लाने लगता है।

ये सब देखकर राघव को शंका होता है।उधर जानकी और शेष को गुफा के पास दिखाया जाता है जहां जानकी शेष से कहती है सुना तुमने तुम्हरे भाई ने पुकारा सायद ओ संकट में है।

अब इधर राघव उस स्वर्ण मृग को खोजने लगता हैं जो बार बार शेष शेष बोलकर आवाज लाग रहा है।

इस बार शेष ने भी ये आवाज सुन लेता है। जानकी बोलती है की सुना तुमने तुम्हार भाई तुम्हे बुला रहा है।शेष बोलता है आपको यहां छोड़कर जाना सही नही है।पर जानकी बोलती है तुम्हारे भाई का क्या फिर।

फिर शेष गुफा में बाण से एक सुरक्षा चक्र बनाता है जिसे लक्ष्मण रेखा कहा जाता है।और जानकी से कहता है कुछ भी हो जाय आप रेखा को पार नही करेगे।और अपने भाई को ढूढने चले जाते है।

इधर राघव स्वर्ण मृग की माया को समझ जाता है और उसके उपर बाण चला देता है। जैसे ही बाण मृग को लगता है वह एक राक्षस का रूप धारण कर लेता है। यह राक्षस और कोई नही रावण का भेजा हुआ मायावी राक्षस मारीच होता है। मारीच के मरते ही वहा शेष भी पहुंच जाता है।

अगले सीन में हम देखते है की उधर एक साधु जानकी की गुफा में भिक्षा मगाने के लिए पहुंचता है। लेकिन शेष द्वारा बनाए गए  सुरक्षा चक्र को पार नही कर पता फिर साधु बोलता है भिक्चाम देही।

दूसरे तरफ राघव और शेष को तेजी से गुफा के तरफ भागते दिखते है।

साधु की आवाज सुनकर जानकी गुफा से बहार आती है और साधु को प्रणाम करती है हम देखते है की ओ साधु जानकी को देखकर मंत्र मुक्ध हो गया है। और बोलता है सन्यासी को भिक्छा दे देवी,ईश्वर तेरा कल्याण करेगा।

जानकी भिक्षा लाती है और सुरक्षा चक्र के अन्दर रहकर साधु से कहती है आइए बाबा भिक्षा ग्रहण करे।

इसमें साधु बोलता है की साधु तुम्हारे द्वार तक आया है तुम दो कदम चलकर नही आ सकती।

जानकी कहती है की मेरे पति बहार गए है बाबा और जब तक ओ नही आ जाते मैं यहां से बाहर नहीं जा सकती।

इस पर साधु बोलता है की तुम एक संन्यासी की चरित्र पर संदेह कर रही है। और साधु वापस जाने लगता है और बोलता है की जिस स्थान से साधु खाली हाथ जाता है वहा से सौभाग्य भी ओ चौखट छोड़ देता है।

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यह सब सुनकर जानकी सुरक्षा चक्र के बहार आकार साधु को भिक्षा देने लगती है।यहां पे हम क्या देखते है जैसे ही सन्यासी की झोली में अन्न डालती है जानकी एक बंधन में बंध जाति है जो हवा में उसे लटका देता है और साधु के साथ साथ जाने लगती है। और हम देखते है साधू के रुप में धीरे धीरे परिवर्तन होने लगता है जब पूर्ण पर से परिवर्तन होता है तो हम देखते है ये साधु और कोई नही लंका अधिपति रावण है जो माता जानकी का हरण करने के लिए साधू का रूप धारण किया था।

यहां पर रावण को ये श्राप मिला था की बिना स्त्री के इच्छा के अगर उसको हाथ लगता है तो रावण के सर के 10 टुकड़े हो जायेगे। इसलिए रावण ने बिना हाथ लगाए सीता का हरण करके ले जाता है।

यहां हम देखते है आसमान से एक बड़ा सा विशालकाय चमगादर उतरता है जिसमे रावण जानकी को बिठाकर ले जाता है।ये क्या हमने तो रावण के पुष्पक विमान के बारे में सुना था ये चमगादड़ कहा से आ गया चलो आगे देखते है और क्या क्या देखने को मिलता है।

जैसे ही चमगादड़ वहा से उड़ता है राघव और शेष वहा पहुंच जाते है और उसे देख लेते है फिर क्या उस चमगादड़ का पीछा करने लगते है चमगादड़ आसमान में उड़ता है और नीचे राघव और शेष उसके पीछे भागते है।

कुछ दूर जाने पर एक विशालकाय बाज रावण पर हमला कर देता है जिसे हम जटायु के नाम से जानते है। जटायु माता जानकी को बचाने का काफी कोशिश करते है लेकीन ओ नही बचा पाता आखिरी में रावण उसके एक पैर को पकड़ कर पहाड़ में फेक देता है। उसके बाद फिर जटायु दुबारा हिम्मत करके जानकी को बचाने का प्रयास करता है लेकिन रावण के आदेश में बहुत सारे छोटे छोटे चमगादड़ जटायु का ध्यान भटकाते है इसी बीच रावण तलवार से उसका एक पंख काट देता है। और जटायु नीचे गिर जाता है जहां उनका मृत्यु हो जाता है। और उसी स्थान में राघव और शेष भी पहुंच जाते है।

और हम देखते है की राघव हार मानकर वही बैठ जाते है और पहाड़ की चोटी से सीता को ले जाते हुए देखता है जहां ओ पूरी तरह विवश दिखते है।

अगले सीन में चमगादड़ के ऊपर बंधी जानकी रावण से पूछती है तुम कोन हो उत्तर में रावण अपना नाम बताता है।उसके बाद जानकी अपनी गले की मोतियों की माला जमीन में गिराती है इससे उनका आसानी से पता लगाया जा सके।

वह माला एक बंदर के सर में गिरता है जो उसे लेकर भागने लगाता है।यहां राघव और शेष जटायु के पास खड़े है जहां बारिश भी हो रहा है शेष अपनी गलती मानते हुए राघव से कहता है की मुझे भाभी मां को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था मेरे कारण ये अनर्थ हुआ है।

इस पर राघव कहते है इसमें तुम्हारी गलती नही ये सब नियति का खेल है।मेरे कंधो पर एक एक ऋण है मेरे पिता की चिता को मैं अग्नि नही दे पाया उनके मित्र को सम्मान से विदा करते है।शायद ये ऋण उतर जाए। और जटायु की चिता को जलते हुऐ दिखाया जाता हैं।

अगले सीन में हम देखते है रावण माता जानकी को लेकर लंका पहुंचते है जहां बड़े बड़े राक्षस द्वार में दिखाए देते है। यहां पर माता जानकी चमगादड़ में बैठे बैठे विशाल काया लंका को देखती है।लेकिन हमे सोने की लंका नहीं काले रंग की लंका दिखाईं जाती है ऐसा लगता है यह कोयल की लंका हो।

रावण चमगादड़ से उतरता है उस स्थान में उनके बेटे के साथ साथ विभीषण भीं मौजुद होता है। इसी बीच उस चमगादड़ को विशालकाय राक्षसो द्वारा जंजीर में बंधकर वहा से ले जाया जाता है और साथ ही माता जानकी को वहा की स्त्री अपने साथ ले जाती है।

इस दृश्य को रावण की पत्नी मंदोदरी अपनी महल से देख रही होती है उसी बीच वहा सुर्पनखा पहुंच जाती है। जिसे मंदोदरी कहती है बधाई हो तुम्हरा बदला पूरा हो गया।

सुर्पनखा मंदोदरी से कहती हैं की बधाई देते वक्त आखों में चमक होना चाहिए।मंदोदरी कहती है की जो आंखे सर्वनाश देख रही हो उसमे चमक कहा से आयेगी। 

फिर सुर्पनखा कहती हैं की मेरा भाई ब्रम्हांड की सबसे खूबसूरत स्त्री से विवाह करने जा रहा है लेकीन आप से सहा नही जा रहा है।

मंदोदरी कहती है की बहुत सोभा यात्रा देख ली हमने अब शव यात्रा देखने की बारी है तैयारी करो ऐसा कहकर वहा से चली जाती है।

दुसरी तरफ राघव को नदी में मुंह धोते हुए दिखाया जाता है जहां शेष उनसे कहते है की आप अयोध्या के राजकुमार है और भाभी वहा की होने वाली महारानी एक संकेत करेगे तो सारी सेना आप के साथ लड़ेगी।

राघव कहते है नही शेष क्योंकि ये मरियादा के खिलाफ़ है क्योंकि मैं अभी कोई राजा नही साधारण वनवासी हूं। और जानकी मेरी पत्नी और अयोध्या की सेना क्या उसके एक कण तक में मेरा 14 वर्ष तक अधिकार नहीं है।

इस पर शेष कहते है की क्या आपको मरियाद भाभी मां की प्राणों से ज्यादा प्रिय है।राघव कहते है की जानकी में मेरे प्राण बस्ते है और मर्यादा प्राणों से प्रिय है।

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अगले ही सीन में हमे ओ बंदर दिखाया जाता हैं जिसे माता जानकी के माला में से मोती का टुकड़ा मिला था जो उसे लेकर वानर राज सुग्रीव के पास पहुंचता है।जो एक काफी विशालकाय गुफा में रहता है साथ ही उसके साथ बहुत सारे वानर भी निवास करते है ओ बंदर सुग्रीव जी के पास पहुंच कर ओ मोती को दिखाता है और जामवंत सहित सभी लोग उस मोती को निहारने लगते है।उसी स्थान में हमे हनुमान जी को दिखाया जाता है जो ध्यान में लीन होते है।

अगले सीन में हम देखते है राघव बाण और पत्थर को घिस कर आग जलाते है। तभी वहां एक बुढ़िया हाथो में बेर लेकर आती हुई दिखती है। जिसे देखकर शेष बोलते है की इतनी रात में जगल में एक बुढ़िया मुझे मायावी लगती है ऐसा बोलकर धनुष उठा लेता है।और पूछता है कोन

तभी बुढ़िया बोलती हैं तीर चलाओ बेटा अगर मैं मायावी हुई तो मुझे कुछ नही होगा अगर मैं मर गई तो निर्दोष की हत्या का पाप तुम्हारे हाथो में होगा।

राघव शेष को तीर चलाने से रोकता है और उस बुढ़िया के तरफ आगे बढ़ता है।और उसे एक चट्टान में बिठाकर खुद नीचे बैठ जाता है।

उसके बाद ओ बुढ़िया राघव से कहती है की बेटा तुम मेरे पैरो के पास बैठे हो तुम्हे ये सोभा नही देता मैं नीची जाति की हु तुम वीर योद्धा दिखाईं पड़ते हो या राजा महाराजा तुम मुझे पाप मत चढ़ाओ।

राघव कहते है की हम जन्म से नही कर्म से बड़े होते है आप मेरे मां सामान है बेटा मां की कदमों में नही तो और कहा बैठेगा।।

उसके बाद ओ बुढ़िया राघव को बेर देती है जो जूठे होते है शेष राघव को मना करता हैं की आप बेर मत खाना बेर जूठे है लेकीन फिर भी राघव बेर खाता है। लेकीन शेष माना कर देता है।

फिर ओ बुढ़िया कहती है की ये बेर मैने चखकर लाए है जो मीठे है उसे मैने रखा हैं और जो खट्टे थे उन्हे फेक दिया।

उसके बाद बुढ़िया कहती है तुम्हारी ही प्रतीक्षा थी बेटा गुरु देव ने कहा था ओ ऊच नीच में भेद नही करेगा मुझे विश्वास था तुम जरुर आओगे।

ये जो बुढ़िया थी ओ माता सबरी है जो राघव के इंतजार कर रही  थीं अब उनका मुक्ति का समय आ चुका है। राघव से आज्ञा लेकर पास जल रही अग्नि में जाकर समाहित हो जाती है।

उस अग्नि से सुंदर स्त्री प्रगट होती है जो राघव को कहती है ऋषि मुख पर्वत पर वानर राज सुग्रीव से मिलो वह तुम्हारी मदद करेगे।

अगले सीन में हमे अशोक वाटिका में रावण को दिखाता जाता है जो जानकी से मिलने आया हुआ है। और जानकी से कहता है की पता है तुम्हे ब्रम्हांड में सबसे खतरनाक हथियार कोन कोन से है। पशुपतस्त्र, नारायण अस्त्र, ब्रह्मास्त्र ये तीनो अस्त चले है मेरे ऊपर लेकीन मुझे सुई की नेक के सामान भी फर्क नहीं पड़ा। मैं कष्ट और पीड़ा से मुक्त हूं लेकिन तुमने मेरा है भ्रम तोड़ दिया कास्ट हो रहा है तुम्हे इस हाल में देख कर तुम्हरा स्थान यहां नही है मेरे महलों में है।

रावण कहता है की लंका की दीवारें पूछती है कब आयेगी मेरी जानकी क्या बोलूं कब आयेगी मेरी जानकी यह सुनकर माता जानकी क्रोध में बोलती हैं की अपने जुबान में लगाम लगाओ जानकी राघव की है और राघव की ही रहेगी।

फिर रावण बोलता है ओ राघव ओ मूर्ख जो एक हिरण से चकमा खा गया इसपे जानकी कहती हैं मुझे क्या पुछता है जब मेरे राघव मुझे लेने आयेगे तभी उनका परिचय पूछ लेना।

रावण कहता है तुम मिथला में नही हो की राघव तुम्हे लेने बारात लेके आएगा तुम लंका में हो जहां एक विशाल काय समुद्र है जिसे आज तक कोई नही लांघ पाया।

जानकी कहती है पर्वत झुक जाएंगे और समुद्र सुख जायेगा प्रतीक्षा करो यहां नही अपने सवर्ण भवन में। और अपने साथ ये कंकड़ पत्थर भी साथ ले जा क्योंकि तुम्हारी लंका में इतना सोना नहीं की जानकी का प्रेम खरीद पाए।

अगले सीन में एक साधु को दिखाया जाता हैं जो एक चट्टान में बैठा है जो बीच बीच में भोले भोले बम बम भोले का जाप जोर जोर से कर रहा है।

जिसे सुनकर राघव और शेष उस साधू के पास पहुंच जाते है।जिसे देखकर साधू बोलता है की मैं तो भोले को बुला रहा था लेकिन यहां भोले भाले आ गए। ये तो मायावी का जंगल है तुम जैसे सुकुमार सुरक्षित नही है। इससे पहले कुछ अनहोनी हो लौट जाओ।

इसके बाद शेष बोलते है की तुम कोन हो मायावी या बहिरुपए अपनी असली रूप में आओ नही तो मुझे अपना असली रूप दिखाना होगा।

साधू बोलते है की रूप रंग तो माया है बालक साधू को माया से क्या काम।फिर शेष बोलते है साधू को बुद्धिमान होना चाहिए बुद्धि है आप में। फिर एक एक करके शेष 3 सवाल पूछते है साधू से जिनका ओ सही जवाब दे देते है।

इसी बीच राघव साधू को निहारने लगते है और हमे भी साधू का पूछ दिखाईं देता है इससे पता चलता है की ओ कोई साधू नही पवन पुत्र हनुमान जी है। उसके बाद  राघव और हनुमान जी के सुंदर मिलन का चित्रण दिखाया जाता है।

राघव बजरंग से कहते हैं ये नाटक करने की क्या जरुरत थी बजरंग कहते है मेरे लिए ये जानना बहुत जरूरी था की आप आप ही हो या कोई मायावी जो आपका रूप धारण करके घूम रहा हो।

अगले सीन में बजरंग राघव और शेष, सुग्रीव से मिलने उसकी गुफा के पास पहुंचता है। जहां पर हमे विशालकाय वानर साथ ही छोटे छोटे वानर भी दिखाए जाते है। राघव से सुग्रिव कहता है आइए राघव बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं।

इस पर राघव कहते है की मेरी पत्नी का हरण हो गया है मै आपकी सहायता चहता हूं। उसके बाद सुग्रीव उसको एक पोटली देता है जिसमे जानकी हरण के समय जानकी जी ने जो माला फेका था उसका मोती है। फिर यहां राम भाऊक हो जाते है।और यहां पर एक और गीत चलता है।

सुग्रीव राघव के पास आता है और कहता है की मेरे पास न सेना है न राज्य सब कुछ मेरे भाई बाली ने छीन लिया।

राघव कहते है की आप अपना अधिकार क्यों नही लेते युद्ध करके, सुग्रीव कहता है की बाली जितना बल साली है उतना है चालक मै उसके बल से तो लड़ सकता हूं लेकिन छल से कैसे लडू लेकीन सत्य मेरे साथ हैं तो मैं बिल्कुल बाली को हरा सकता हूं आप सत्य हो राघव।

राघव कहते है आप तैयारी करे सुग्रीव कल हम बाली को मल युद्ध के लिए ललकारेगे।

अगले सीन में सुग्रीव बाली को मल युद्ध के लिए ललकारता है। बाली का खुबसूरत पत्थरों का महल दिखाया जाता है जो एक सुंदर झरने के किनारे है आस पास बाली की विशाल सेना होती है। सुग्रीव की आवाज़ सुनकर बाली वहा पहुंचता है। जहा दोनो का आक्रामक युद्ध होता है। जिसमे सुग्रीव बाली के समाने टिक नही पाता है।

हम यहां देखते है मल युद्ध में बाली शास्त्रों का प्रयोग करता है जो की नियम के विरुद्ध होता है। इसी बीच बाली सुग्रीव को एक पहाड़ के टीले में फेक देता है जिससे ओ टीला अचानक टूट के गिरने लगता है उस टीले में काफी सारे वानर होते है जो खतरे में होते है सुग्रीव उस पहाड़ को संभालता है और उन्हें बचाने का प्रयास करता है लेकिन बाली उस स्थिती में भी सुग्रीव को मरता है फिर सुग्रीव के उपर शस्त्र से प्रहार करने ही वाला होता है तभी राघव अपनी बाण से बाली का वध कर देता है क्योंकि बाली अधर्म संगत काम कर रहा होता है।

अब सुग्रीव को राजा बनाया जाता है। और जानकी को ढूंढने की रणनीति बनाई जाती है जिसमे एक छोटी टुकड़ी के साथ अंगद, जामवत और बजरंग को भेजा जाता है जिसमे राघव बजरंग को एक अंगूठी देता है पहचान के लिए जिससे जानकी तुम पर विश्वास कर सके।

अब सीन आता है लंका का जहां रावण अपने पुत्रो का युद्ध कौशल देख रहा होता है इसी बीच विभीषण जानकी को छोड़ने के लिए कहता है लेकिन रावण अपने दस सरो से राय लेने के बाद मना कर देता है इस पर विभीषण कहता है की आप अपने काल के लिए कालिन बिछा रहे है भईया अब उसे आने से कोई नही रोक सकता।

अगले सीन में हम बजरंग को देखते है जो एक चट्टान में खड़े होकर समुद्रा को देख रहा होता है उसी बीच जामवंत आता है और बजरंग को उनकी झमता को बता है की तुम वही वानर हो जो बच्चन में सूर्य को सेब समझकर निगल गए थे। तुम्हे देवताओं ने अद्भुत शक्ति प्रदान की है तुम अपनी शक्ति को पहचानो जो तुम कर सकते हो ओ और कोई नही कर सकता।

इसके बाद बजरंग के शरीर में बदलाव होने लगते है। और एक विशाल रूप धारण कर लेता है। जामवंत के कहने पर पहाड़ से छलांग लगा देता है हम देखते है की बजरंग उड़ रहा है क्योंकि एक श्राप से ग्रसित होकर बजरंग अपनी शक्ति को भुल चूका था।

विशाल समुद्र पार करके बजरंग लंका में अशोक वाटिका में पहुंचता है जहां माता जानकी आराम कर रही होती है। फिर बजरंग राघव के दिए अंगूठी को पाता जानकी के पास पेड़ से नीचे गिराता है जिसे माता जानकी देख लेती है। और प्रसन्न हो जाती है।

तभी बजरंग भी सामने आ जाता है और माता जानकी को बताता है की मैं राघव का दूत हूं बजरंग, आपका पता लगाने आया हूं। राघव आपको जल्द लेने आने वाले है।

जानकी पूछती है राघव कैसे है बजरंग बोलता है आपके बीना कैसे हो सकते है। फिर माता जानकी रोने लग जाती है बजरंग उन्हे आसू पोछने को कहते है।

इसी बीच अशोक वाटिका में एक सैनिक आ जाता है।जो बजरंग से कहता है तु यहां कैसे आ गया ये तेरे बुआ का बगीचा है जहां हवा खाने पहुंच गया तुझे क्या लगा बच जायेगा मुझसे पता भी है मैं कोन हूं मेरा नाम है धाखड़ा सुर, मरेगा बेटे आज तू अपने जान से हाथ धोएगा।

बजरंग कहता है की हाथ नही मै धाकड़े को ही धोउगा फिर दोनो मे लड़ाई चलाता है जहां बजरंग धाकडा सुर को बहुत मरता है।

जिस तरह से डायलॉग का प्रयोग किया गया है कही कही पर आप को हसी भी आयेगा तो कही कही आपको तकलीफ भी होगा की इस तरह की शब्दावली का प्रयोग नही करना चाहिए था।

अब हम देखते है वहा मेघनाथ भी आ जाता है जो बजरंग को अपने माया जाल में फसा लेता है। जहां हमे लिफ्ट दिखाया जाता है जिसमे हनुमान जी को लाया जाता है रावण के पास, जहा रावण तलवार को हथौड़ा मार रहा होता है इस दौरान रावण का लुक एक वेल्डर के जैसे दिखाया गया है जिसे देखकर मैं अपनी हसी नही रोक पाया।

रावण मेघनाथ को देख के कहता है।तुम्हारे पास और कोई काम धंधा नही है जो बंदर पकड़ रहे हो।

फिर मेघनाथ कहता है ये बंदर बोलता है अशोक वाटिका में जानकी से बात कर रहा था। इसे राघव ने भेजा है लंका में जासूसी करने और लंका में जासूसी की सजा है मौत।

फिर बजरंग अपना परिचय देता है की मैं बजरंग हूं अयोध्या के होने वाले युवराज राघव का दूत।

रावण कहता हैं की ओ कहा का राजा है जो अयोध्या में रहता नही जो जंगल में रहता हैं और जंगल का राजा शेर होता है। तो ओ कहा का राजा हैं।

फिर विभीषण कहता है की लंकेश ये जासूस नही दूत है और लंका में दूत को जान से नही मारा जाता।

उसके बाद रावण उसके पूछ में आग लगाने का आदेश देता है अब बजरंग के पूछ में कपड़े बांध कर आग लगा दिया जाता है।

उसके बाद एक मजेदार डायलॉग बाजी होता है।मेघनाथ बजरंग के पूछ में आग लगाकर कहता है। जली न अभी तो और जलेगी जिसकी जलती है वही जानता है फिर बजरंग कहता है कपड़ा तेरे बाप का तेल तेरे बाप का आग भी तेरे बाप का और जलेगी भी तेरी बाप की।

कुछ कुछ जगह मूवी में कामेडी के लिए यह डायलॉग डाले गए है चुके यह एक धार्मिक फिल्म होने के कारण दर्शको को काफ़ी ठेस भी पहुंचा है। क्योंकि ये कोई किरदार नहीं बल्कि ये हिन्दू धर्म के प्राण है।

उसके बाद मेगनाथ बजरंग को लंका से नीचे फेंक देता है फिर हम देखते है की बजरंग एक एक करके लंका को आग लगाना सुरु करता है अब लंका आग में जलता दिखाईं पड़ता है।

लंका को जलाने के बाद बजरंग माता जानकी के पास जाता है बजरंग कहता है आप मेरे साथ चलो तब माता जानकी कहती है की मेरे लिए राघव ने शिव धनुष तोड़ था अब उन्हे रावण का घमड तोड़ना पड़ेगा। मुझे रावण उनके चौखट से लाया था मैं तभी जाऊंगी जब राघव लेने आयेगे। जानकी बजरंग को एक कड़ा देती है जिससे राघव को ये विश्वास हो जाय की जानकी कुशल मंगल है।

अगले सीन में हम देखते है राघव समूद्र के किनारे खड़ा है पुरी सेना के साथ तभी सुग्रीव अपनी सेना से कहता है पहाड़ा उखाड़ लाओ और पाट दो समूद्र को तभी जामवंत राघव से कहते है हम इस धरती के सभी पत्थर को जोड़कर भी समुद्र में सेतु नही बना सकते।

तब राघव कहते है सेतु तो बनाना ही पड़ेगा पत्थर से नही तो प्रार्थना से ही सही।

तभी हमे आकाश में बजरंग दिखाईं देता है जो लंका से राघव के पास पहुंचता है और जानकी द्वारा दिया गया कड़ा राघव को देता है।

राघव समुद्र देव से प्रार्थना करते है की समुद्र देव मैं न्याय के लिए लड़ने जा रहा हूं मुझे मार्ग दीजिए लेकीन समुद्र देव का कोई उत्तर नही मिलता इस पर राघव क्रोधित होकर धनुष बाण उठता है और ब्रमाहस्त्र का आव्हान करते है ।

यह देखकर समुद्र देव प्रगट होते है और माफी मागते है और कहते है की आपके नाम से जो भी समुद्र मे पत्थर डालेंगे उसे मैं डूबने नही दूंगा।

हम देखते है सभी वानर मिलर समुद्र में पत्थर डालने लगते है जो समुद्र में तैरने लगते है।

तभी राघव एक डायलॉग बोलते है जो सच में पत्थर में भी जान फुक दे।

धस जय ये धरती या चटक जाए ये आकाश न्याय के हाथो होकर रहेगा अन्याय का सर्वनाश। वानर वीरों कोन है तुम्हार रास्ता रोके किसको मिला है ये अधिकार उखड़ जाते है पर्वत के पाव जब तुम भरते हो हुंकार।तुम्हरे पत्थर छातियों को क्या भेदेगे, अहंकार के तीर।जिनके धमनियों में रक्त की जगह आग बहती है। तुम हो ओ सुर वीर।

रावण आ रहा हूं मैं न्याय के दो पैरो से अन्याय का दस सीर कुचलने।आ रहा हूं अपनी जानकी को लेने।

अगले सीन में हम देखते है दिन रात एक करके सेतू बनाने का काम चल रहा हैं उसी समय लंका से एक स्त्री और पुरूष नाव से राघव के तरफ आते दिखाईं पड़ते है।

ओ कोई और नही रावण का छोटा भाई विभीषण और उसकी पत्नी होती है जो लंका की जनता की प्राणों की रक्षा के लिए राघव से प्रार्थना करते है की इस युद्ध में निर्दोष लंका वाशी को कुछ न हो। और इस युद्ध में मै आपका सहयोग करूंगा।

राघव वचन देते है की मेरा दुश्मन रावण है निर्दोष लंका वासीयो को कुछ नहीं होगा।और विभीषण को गले लगाकर उसके हाथो में मित्रता स्वरूप रुद्राक्ष बांध देते है।और विभीषण को विजय के बाद लंका का राजा बनाने का वचन देते है।

तभी विभीषण की पत्नी विभीषण से कहती है की इनके वचन का क्या भरोसे क्योंकि राघव कोई देवता नही मानव है और मनुष्य इतना त्यागी नही हो सकता की अपना जीता हुवा राज्य किसी और को दे दे।

तभी विभीषण कहता है की जब राघव का अयोध्या में राज्य अभीषेक होने वाला होता है तभी उसकी माता केयकई उन्हे पिता दशरथ से 2 वचन मगाती है एक अपने पुत्र भरत के लिया अयोध्या का राज्य और दूसरा राघव के लिए 14 वर्ष का बनवास।।

तब राघव अपने पिता से कहते है रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई।

जो अपने पिता के वचन रखने के लिए सिंहासन त्याग कर बनवास ग्रहण कर सकते हैं उनके बारे में तुम खुद ही सोच लो।

अब हम देखते है की अशोक वाटिका में माता जानकी बैठी हुई है जहां रावण आता है और अपने प्रेम स्वीकार करने के लिए उन्हे मानता है लेकिन माता जानकी मना कर देती है।और माता जानकी को रावण डराने लगता है फिर भी उसके बात का जानकी पे कोई असर नहीं होता फिर रावण वहा से चल जाता है।

अब हम देखते है की राघव अपनी सेना के साथ सेतु से लंका की तरफ बड़ रहे है। और लंका पहुंचने वाले है। वही दूसरी तरफ़ रावण को दिखाया जाता है जो अपने चमगादड़ को मांस खिला रहा होता है। तभी रावण का सेनापति आता है और रावण को राघव के पहुंचने की सूचना देता है तभी रावण कहता है निवाला खुद मुंह में आ रहा है।

सेनापति राघव की सेना के बारे में जानकारी देते है की उनकी सेना में हजारों बंदर है और उनमें से कुछ तो उड़ते भी है तभी रावण कहता है एक जासूस भी है रावण का जासूस।

तभी हमे विभीषण को दिखाया जाता है जो राघव के पास आता है और उनको देख के उनका तारीफ के पुल बांधने लगता है तभी विभीषण आगे की रणनीति के बारे में पूछता है की क्या हमे वार करना चाहिए या वार की प्रतीक्षा करनी चाहिए क्या बजरंग जैसे और भी वानर है जो उड़ सकते है।

तभी राघव विभीषण के हाथ को देखते है जिसमे उसके दिए हुए रुद्राक्ष नही होते है फिर राघव कहते है  ना क्यों नही अंगद, सुग्रीव और जामवंत तभी विभीषण कहता है तीन और उड़ने वाले वानर है।

तभी राघव सुग्रीव के गले पकड़ कर ऊपर उठा देता है और बोलता है विभीषण अच्छे से जानता है की जामवंत वानर नही भालू है कोन हो तुम तभी वह अपनी असली रूप में आता है ये कोई और नही रावण का भेजा हुआ जासूस सूक होता है।

फिर आस पास शेष और बजरंग भी पहुंच जाते है और उसे मारने के लिए अपना हथियार निकाल लेते है।

तभी राघव दिल छू लेने वाला बात कहते है की शत्रु को मारने से शत्रुता नही मरती इसे क्षमा करके देखते है शायद इसके अन्दर की करवाहट मर जाए।

कुछ वानर को विभीषण को ढूढने भेजा जाता है जिसे शुक ने रस्सी से बांध दिया था।

राघव सूक से उनका परिचय जानने के बाद अंगद से कहता है की इसे हमारी पुरी छावनी घूमाओ एक एक वानर से मिलाओ और हमारे शस्त्रगार भी दिखाओ ये सुनकर सूक भौचक्का रह जाता है।

अगले सीन में हम देखते है अंगद एक लकड़ी के पेटी में कुछ लेकर लंका पहुंचता है जहां विशाल राक्षस उसके लिए लंका के दरवाजे खोलता है और रावण के पास पहुंचता है और बोलता है तुझे अंगद के भेद जानना है ये देगा करके सूक को लकड़ी की पेटी से बाहर निकलता है और चेतवानी देते हुए बोलते है की सुबह तक जानकी माता हमे लौटा दे नहीं तो आज खड़ा है कल लेटा मिलेगा यह बोलकर अंगद वहा से उड़ जाता है।

अगले सीन में राघव और रावण की सेना को हम आमने सामने देखते है जहां रावण अपने चमगादड़ के साथ आकाश मार्ग से वहा उतरता है। यहां हम देखते हैं की मेघनाथ माता सीता को जंजीर से जकड़ कर वहा लाता है। जहां राघव और जानकी एक दुसरे को देख के खुश होते है और पूरी सेना को भी अच्छा लगता हैं की रावण अपनी गलती समझ चुका है।

अब इंद्रजीत जानकी की बेडिया खोलता है और रावण आगे जाने का जानकी को संकेत देता है। तभी राघव और जानकी एक दुसरे के तरफ भागते है। इसी बीच इंद्रजीत माया से वहा जाकर जानकी का गला काट देता है।और राघव उन्हे संभाल लेता है लेकीन ये क्या अचानक से उसका रूप बदल जाता हैं ये और कोई नही रावण का दूत सूक होता है।फिर रावण और उसकी सेना हसने लगते है।

रावण अपने चमगादड़ में बैठ कर निकल जाता है इधर सुग्रीव युद्ध का आवाहन कर देता है। इसी बीच राघव रावण की सेना के बीच घिर जाते है तब बजरंग शेष, अंगद और सुग्रीव को अपने साथ उड़ाकर राघव की मदद के लिए पहुंचा देता है।

जहां इंद्रजीत अपनी माया से युद्ध करने लगता है जिसकी माया किसी को समझ नही आता ओ एक एक करके सभी के ऊपर प्रहार करने लगता है। इसी बिच शेष के ऊपर इंद्रजीत ने नाग पास शस्त्र चला देता है जिससे शेष मूर्छित हो जाता है और राघव विलाप करने लगते है।

यहां मेघनाथ राघव को लंका छोड़ने की धमकी देता है मेरे एक सपोले ने तुम्हरे शेष नाग को लंबा कर दिया अभी तो पुरा पिटारा भरा पड़ा है। इसलिए तुम अपने बंदरों को लेकर लंका से चले जाओ।

अगले सीन में अपनी छावनी में शेष को लेटे पाते है जहां विभीषण की पत्नी इंद्रजीत के नाग पास का तोड़ बताते हुए कहती है उस औषधि का नाम संजीवन है जो दौलागिरी पर्वत पर मिलेगा।

फिर हनुमान पूछते है की मैं संजीवनी को पहचानूंगा कैसे जिसपे विभीषण की पत्नी कहती है की संजीवनी न फल है न पत्ती न फुल न ओ मधुमास में हरी होती है और न पतझड़ में पीली न उसमे सुगंध होती है न कोई दुर्गंध न ओ कमल की तरह कोमल होती है और न बबूल की तरह कटिली सजीवनी सजीवनी है यही उसकी पहचान है।

सजीवनी का वर्णन सुनकर मेरा दिमाक काम करना बन्द कर दीया खतरनाक वर्णन किया है पता नही कहा से इनको ये जानकारी मिला।

अब हम देखते है बजरंग उस स्थान में पहुंच गए है जहा संजीवनी का पौधा है फिर हनुमान जी सोचते है आज एक मूर्छित हुआ है क्या पता कल कोई और मूर्छित हो इसका जरूरत तो पड़ेगा यह कहकर पुरा पहाड़ उठा ले आते है।

उसके बाद विभिषण की पत्नी उस औषधि को कूटकर उसका रस निकालती है और साथ में वानर भी रस निकालना चालू कर देते हैं और एक जगह इकट्ठा करने लगते है यहां हम देखते है संजीवनी के रस से शेष को नहलाया जाता है फिर शेष एकदम सही हो जाते है। और राघव और पूरे सेना में खुशी का लहर दौड़ पढ़ता है।

दुसरी तरफ़ रावण अजगर से मालिश करवा रहा होता है ये तरीका देख के सच में मजा ही आ गया अजगर से थाई मसाज।

वही उसका सेनापति आता है और कहता है लंकेश शेष बच गया इंद्रजीत के नागपास का तोड़ किसी को नही पता फिर ये कैसे हुआ।।

तभी रावण हस्ते हुए कहता हैं विभीषण उसको तो कठोर दण्ड दूंगा।

इधर विभीषण राघव और सभी सेना के साथ मिलकर युद्ध रणनीति बनते हुए कहते है की।

रावण कभी पहले युद्ध में पाव नही रखता सबसे पहले युद्ध में इंद्रजीत और कुंभकर्ण आएगा।

इंद्रजीत के बारे में विभीषण बताता है की ओ हर युद्ध से पहले स्वर्ण झील में स्नान करता है अगर ओ स्नान करके बाहर आ गया तो उसे कोई नही हरा सकता वही पानी मे उसकी शक्ति खत्म हो जाती है। इसके बाद उसे उसी झील में मारने की रणनीति बनाई जाती है।

फिर आते है कुंभकर्ण की तरफ जो छह महिने सोता है ओ इतना शक्तिशाली जो पृथ्वी को घूमने से रोक दे ।

कल है नवमी कल लंकेश शिव साधना में रहेंगे तो बिना साधना पुरा किए ओ निकलेंगे ही नही।

तभी राघव कहते है की हम 3 दिशा से युद्ध करेगे। सुग्रीव को एक सेना की टुकड़ी के साथ उत्तर की दीवार पर हमला करने को बोला जाता है।वही शेष विभीषण और अंगद को इंद्रजीत से युद्ध के लिए भेजा जाता है। और राघव कहते है बजरंग के साथ मिलकर मैं भीतर से शत्रु को मरूंगा। इस बीच जिस टुकड़ी को मेरा जरूरत होगा मैं वहा पहुंच जाएगा।

अगले सुबह युद्ध में जानें से पहले राघव अपनी सेना को मोटिवेट करते हैं जिससे ओ पुरी ताकत से लड़ सकें राघव जब डायलॉग बोलते है तो बीच बीच में हमे बाहुबली मुवी की फीलिंग आती है।

अब हम देखते है राघव की सेना लंका की तरफ आगे बड़ रही है। वही रावण की सेना उन्हें देखकर बाकी लोगो को सतर्क करती है युद्ध के लिए और फिर लंका की तरफ़ से वानर सेना पर आग की गोले की बारिश होने लगती है।

दूसरी तरह इंद्रजीत को मरने के लिए विभीषण के साथ नाव में बैठ कर शेष और अंगद स्वर्ण झील की तरफ जाते है।

अब हम देखते है लंका की दीवारों में वानर चढ़ने लगते है लेकीन दीवारों में लगा सुरक्षा चक्र उन्हे काटने लगते है जिससे वानर भयभीत हो जाते है।

तभी हम देखते है बजरंग की पीठ में बैठकर राघव वहा आते है और एक एक करके सभी सुरक्षा चक्र को नष्ट कर देते है।

अब सभी वानर दीवार के सहारे लंका में परवेश करते है और रावण की सेना से लड़ने लगते है। वहा पर राघव भी पहुंच जाते है और रावण की सेना का वध करने लगते है साथ ही रावण के सेनापति का भी वध कर देता है।।

दुसरी तरफ शेष और मेघनाथ का युद्ध होता है जिसमे शेष के हाथो इंद्रजीत मारा जाता है।

फिर युद्ध में कुंभकर्ण भी आ जाता है जिसके सामने पूरी सेना असहाय महसूस करती है उसी बीच बजरंग आकर कुंभकर्ण से लड़ता है लेकीन ओ भी उसका मुकाबला नहीं कर पाता फिर राघव अपनी धनुष से कुंभकर्ण का वध कर देता है।

इधर रावण भी अपनी साधना पूर्ण करके युद्ध के मैदान में जानें के लिए निकलता है वही मंदोदरी सफेद वस्त्र पहनकर खड़ी रहती है और सुर्पनाख रावण का तिलक करने खड़ी रहती है लेकिन रावण बिना तिलक किए वहा से चला जाता है। रावण चमगादड़ की सेना को युद्ध मैदान मे भेजता है जहां ओ तबाही मचाना चालू कर देते है। एक एक करके वानर को हवा में उठाकर ले जाने लगते है।

और रावण खुद विशाल चमगादड़ का रूप लेकर पहुंच जाता है जिसका बजरंग पीछा करने लगता है। और उसे आसमान से पकड़ कर जमीन में पटक देता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है। इधर हम देखते है आसमान से एक और विशाल चमगादड़ आ रहा है जो और कोई नही रावण है जो अपने वास्तविक रूप में आता है और राघव से युद्ध करने लगता है। और एक एक करके राघव की सेना का विनाश करने लगता है।

फिर राघव रावण के गले में वार करता है लेकीन रावण को कोई फर्क नही पड़ता एक एक करके रावण के नई नई सिर आने लगते है। तभी रावण गुस्से मे राघव के उपर हमला करता है तभी उन्हे बजरंग बचा ले जाता है।

तभी रावण विकराल रूप धारण करता है जिसमे उसके दस सिर दिखाईं पड़ते है और ब्रम्हा के वरदान के वचन सुनाई पड़ते है।

तभी राघव एक विशेष अस्त्र रावण की नाभी में चलाते है जिससे रावण का अंत हो जाता है। हम देखते है की एक एक सर रावण का आग में जल रहा है।जहां विशाल विष्फोत होता है और सभी तरफ धूल ही धूल हो जाता है

उस धूल और धुएं के गुब्बार में माता जानकी दिखाईं देती है फिर माता जानकी और राघव का सुंदर मिलन होता है।

अब हमे राघव और माता जानकी साथ ही शेष और बजरंग को दिखाया जाता है जहां पुष्पक विमान होता है।

मुवी के अंत में पुष्पक विमान देखने को मिला पूरे मुवी में रावण ने पुष्पक विमान का प्रयोग नही किया है।

इसके बाद अयोध्या में दिवाली जैसा माहौल होता है और राघव का राज्य अभिषेक होते है ये सभी चित्रण को एनिमेटेड दिखाया गया है। इस तरह मूवी होता है यहां समाप्त।।

दोस्तो आपको यह मूवी का एक्सप्लेनेशन कैसा लगा कॉमेंट करके जरुर बताएं

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